पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी का सान्निध्य प्राप्त करके आने वाले प्रत्येक संत ने गौरव का अनुभव किया। सभी संतों के मन में जितनी भावनाएँ ऐतिहासिक प्रतिमा के दर्शन करने की थी, वैसी ही भावनाएं इस सदी की ऐतिहासिक साध्वी के रूप में पूज्य माताजी से मिलने की थी।
चूँकि वर्तमान में पूज्य माताजी बीसवीं-इक्कीसवीं शताब्दी में दीक्षित समस्त १४००-१५०० साधु-साध्वियों में सर्वप्राचीन दीक्षा प्राप्त हैं अत: पूज्य माताजी से मिलना और उनके जीवन के प्रत्यक्ष अनुभवों से साक्षात्कार करना यह सभी संतों की विशेष अभिरुचि और ज्ञानपिपासा का कारण था। अत: इन्हीं भावनाओं के आधार पर महोत्सव में पधारने वाले सभी साधु-संत पूज्य माताजी के साथ एवं आपस में आगम चर्चा करके आल्हाद की अनुभूति से सराबोर हुए। इस संदर्भ में सभी साधुओं की एक विशेष वार्ता दिनाँक २२ फरवरी २०१६ को प्रात: रत्नत्रय निलय में सम्पन्न हुई।