प्रिय पाठकों ! दशलक्षण पर्व को प्रभावना के साथ मनाकर आप सभी क्षमावणी पर्व की तैयारी में होंगे । एक वर्ष के पारस्परिक वैर भाव का त्याग करके आत्मा को परम शुद्ध बनाने का यह पर्व बहुत विशेष माना जाता है । इसमें आप सभी परस्पर में क्षमाभाव करते हुए एक नया सन्देश परिवार एवं समाज को अवश्य दीजिएगा, ऐसी मेरी प्रेरणा है । इस पर्व के संदर्भ में एवं क्षमा के अपूर्व कथानायक भगवान पार्श्वनाथ का उदाहरण पूर्णतया अनुकरणीय है जो मैं यहाँ प्रस्तुत करना आवश्यक समझती हूँ-
क्षमा से पर्व का उद्गम क्षमा से ही समापन है ।
क्षमा स्रोतस्विनी सिन्धु में पारस का उदाहरण है ।।
कमठ के तीव्र उपसर्गों को भी जीता क्षमता पर ।
क्षमा यदि वे नहीं धरते नहीं बन पाते तीर्थंकर ।।१।।
अन्त में मैं आपसे यही कहना चाहती हूँ कि –
अतीतों की न सोचो तुम , हृदय में स्नेह भर लाओ ।
भुलाकर पीढियों की शत्रुता , सब एक हो जाओ ।
क्योंकि ध्यान देना है कि –
वैर से वैर की शान्ति नहीं होती वचन जिन है ।
क्षमा और धैर्य की शक्ति वैर धोने में सक्षम है ।।
प्रिय बन्धुओं ! इस अवसर पर एक भजन भी आपको दे रही हूँ, जो आप क्षमावणी के कार्ड में छपाकर मित्रों को भेज सकते हैं-