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क्षमावणी पर्व की महिमा

September 8, 2022UncategorizedChandnamati Mataji

                क्षमावणी पर्व की महिमा

प्रिय पाठकों ! दशलक्षण पर्व को प्रभावना के साथ मनाकर आप सभी क्षमावणी पर्व की तैयारी में होंगे । एक वर्ष के पारस्परिक वैर भाव का त्याग करके आत्मा को परम शुद्ध बनाने का यह पर्व बहुत विशेष माना जाता है । इसमें आप सभी परस्पर में क्षमाभाव करते हुए एक नया सन्देश परिवार एवं समाज को अवश्य दीजिएगा, ऐसी मेरी प्रेरणा है । इस पर्व के संदर्भ में एवं क्षमा के अपूर्व कथानायक भगवान पार्श्वनाथ का उदाहरण पूर्णतया अनुकरणीय है जो मैं यहाँ प्रस्तुत करना आवश्यक समझती हूँ-

क्षमा से पर्व का उद्‌गम क्षमा से ही समापन है ।

क्षमा स्रोतस्विनी सिन्धु में पारस का उदाहरण है ।।

कमठ के तीव्र उपसर्गों को भी जीता क्षमता पर ।

क्षमा यदि वे नहीं धरते नहीं बन पाते तीर्थंकर ।।१।।

अन्त में मैं आपसे यही कहना चाहती हूँ कि – 

अतीतों की न सोचो तुम , हृदय में स्नेह भर लाओ ।

भुलाकर पीढियों की शत्रुता , सब एक हो जाओ ।

क्योंकि ध्यान देना है कि – 

वैर से वैर की शान्ति नहीं होती वचन जिन है ।

क्षमा और धैर्य की शक्ति वैर धोने में सक्षम है ।।

प्रिय बन्धुओं  ! इस अवसर पर एक भजन भी आपको दे रही हूँ, जो आप क्षमावणी के कार्ड में छपाकर मित्रों को भेज सकते हैं-

तर्ज—तीरथ कर लो पुण्य कमा लो……

क्षमागुण को मन में धर लो, क्षमा को वाणी में धर लो।

शत्रु मित्र सबमें समता का भाव हृदय धर लो।।

क्षमा गुण को मन में धर लो।। टेक.।।

मैत्री का हो भाव सभी प्राणी के प्रति मेरा,

गुणीजनों को देख हृदय आल्हादित हो मेरा।।

वही आल्हाद प्रकट कर लो,

क्रोध बैर भावों को तजकर मन पावन कर लो।

क्षमा गुण को मन में धर लो।।१।।

चिरकालीन शत्रुता भी यदि किसी से हो मेरी।

उसे भूलकर मित्रभावना बने प्रभो! मेरी।।

भावना सदा सरल कर दो,

चन्दन सी शीतलता से मन को शीतल कर दो।

क्षमा गुण को मन में धर लो।।२।।

एक-एक ईंटों को चुनने से मकान बनता।

एक-एक धागा बुनने से परीधान बनता।।

यही क्रम गुण में भी धर लो,

एक-एक गुण से आत्मा को परमात्मा कर लो।

क्षमा गुण को मन में धर लो।।३।।

दश धर्मों के आराधन से मृदुता आती है।

भावों में ‘चंदनामती’ तब ऋजुता आती है।।

रत्नत्रय को धारण कर लो,

पर्वों का इतिहास यही जीवन में अमल कर लो।

क्षमा गुण को मन में धर लो।।४।।

Tags: Editorial
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