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जयिंसहपुरा उज्जैन का जैन संग्रहालय

June 21, 2015ग्रन्थ भण्डारjambudweep

जयसिंहपुरा उज्जैन का जैन संग्रहालय


— डॉ.सुशीला सालगिया

जैन कला और संस्कृति हमारे देश की अमूल्य धरोहर है जिसे सहेजने और सँवारने का कार्य किया है श्री दिगम्बर जैन मालवा प्रांतिक सभा बड़नगर ने जैन संग्रहालय जयसिंहपुरा उज्जैन के रूप में। भारत की प्राचीनतम इस संस्था ने ‘मानवसेवा’ के आदर्श को विशेष कीर्तिमान स्थापित करते हुए विभिन्न प्रवृत्तियों के गौरवपूर्ण यशस्वी ११३ वर्ष पूर्ण किये हैं। संस्था का नाम भले ही ‘मालवा प्रांतिक’ शब्द से जुड़ा है किन्तु इसकी सेवाएँ सम्पूर्ण भारत से जुड़ी होने से इसका श्रेय भी सम्पूर्ण जैन समाज को जाता है। इन्दौर के रायबहादुर सेठ श्री हुकुमचंदजी सहित इन्दौर एवं बड़नगर के श्रेष्ठिजन इसके ट्रस्टी रहे हैं और वर्तमान में इसके अध्यक्ष श्री प्रदीपकुमार सिंह कासलीवाल एवं महामंत्री श्री भागचंदजी काला तथा इस विभाग के मंत्री सुशीलकुमार सेठी है। इनके साथ संस्था के समस्त सदस्य तथा दिगम्बर जैन मंदिर नमकमण्डी उज्जैन के सभी पदाधिकारियों के सहयोग से कार्य हो रहा है।

उज्जैन में जैन संग्रहालय के निर्माण का महत्त्व :— उज्जैन एक पौराणिक एवं ऐतिहासिक नगर है। अति प्राचीन पौराणिक धार्मिक एवं ऐतिहासिक नगरी उज्जयिनी ही वर्तमान में उज्जैन नगर के नाम से प्रसिद्ध है। मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में इन्दौर के निकट एक नगर है उज्जैन। प्राचीन समय में अवन्ती राज्य की राजधानी होने से इसे अवन्तिका भी कहा जाता रहा है। यहाँ प्रसिद्ध महाकाल मंदिर, पवित्र क्षिप्रा नदी तथा द्वादशवर्षीय कुंभ मेला भरने से यह विश्व प्रसिद्ध नगर है। इसे सम्राट विक्रमादित्य की राजधानी तथा कवि कालिदास की कर्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है। यहीं पर विहार के समय भगवान महावीर पर रुद्र द्वारा उपसर्ग किये गये थे, और महावीर उपसर्ग विजेता हुए थे। बारहवर्षीय अकाल के भविष्यवक्ता पंचम श्रुत केवली जैनाचार्य भद्रबाहु स्वामी ने संघ पर आसन्न संकट की स्थिति का अनुमान कर यहीं से दक्षिण पथ की ओर प्रयाण किया था। मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त भी दिगम्बर दीक्षा धारण कर गुरु के साथ दक्षिण में विहार कर गये थे। इस नगर में जयिंसगपुरा दिगम्बर तीर्थ तथा अवन्ती पाश्र्वनाथ श्वेताम्बर तीर्थ प्रसिद्ध है। यहाँ अनेक दिगम्बर जैन मंदिर, कृष्ण सुदामा का गुरुकुल सांदिपनी आश्रम तथा कई दर्शनीय स्थल जंतर मंतर तो जयिंसगपुरा संग्रहालय के निकट ही है। इस ऐतिहासिक एवं धार्मिक नगर में प्रतिदिन काफी संख्या में यात्री आते रहते हैं। तीर्थ के मंदिर परिसर में ही संग्रहालय का निर्माण हुआ है। अत: तीर्थ दर्शन के साथ ही संग्रहालय दर्शन भी होने से एक पंथ दो काज हो जाते हैं। कला प्रेमी दर्शक इस संग्रहालय को देखकर निश्चित ही अभिभूत होंगे, जब इसमें अत्याधुनिक ऑडियो विजुअल सिस्टम लग जायेगा जिसकी प्रक्रिया शुरु की जा चुकी है और संभवत: चंद महिनों में यह सिस्टम शुरु हो जायेगा।

जैन कला का भण्डार : मालवा :— उज्जैन, बड़नगर, धार, बदनावर, ईसागढ़ (इन्दौर), शाजापुर, देवास, गंधर्वपुरी यह संपूर्ण मालवा प्राचीनकाल में जैन बाहुल्य क्षेत्र होने से यहाँ जैन मंदिर बहुतायत में रहे हैं जो प्राकृतिक प्रकोप से भूगर्भ में समा गये थे। इसके अतिरिक्त मुगलकाल में मंदिर एवं मूर्ति भंजन प्रवृत्ति के कारण भी मूर्तियाँ भूमिगत सुरक्षित कर दी गई होंगी। वे ही सभी मूर्तियाँ एवं मंदिरों के अवशेष खुदाई में प्राप्त हुए और वर्तमान में भी प्राप्त होते रहते हैं। इस तरह ७ वीं शताब्दी से लेकर १८वीं शताब्दी तक के अमूल्य अवशेष तथा मूर्तियाँ मालवा एवं मालवा से बाहर से प्राप्त हुई हैं।

कला के अनमोल खजाने की खोज एवं सुरक्षा—संरक्षण :— मालवा के खेतों, गाँवों एवं नगरों में खुदाई से प्राप्त मूर्तियों को बहुत भ्रमण एवं प्रयास करके म. प्र. शासन की अनुमति से एकत्रित किया, उज्जैन के व्याख्यान वाचस्पति पंडित स्वर्गीय सत्यन्धरकुमा रजी सेठी एवं उनके साथियों ने। जैन रत्न श्री देवकुमार सिंह जी कासलीवाल के मंत्रित्व काल में वीर निर्वाण संवत् २४७१ में मालवा प्रांतिक सभा के प्रयासों से उनका पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक महत्व, काल निर्धारण तथा शिल्प कला का मूल्यांकन आदि पुरातत्ववेत्ताओं एवं विद्वानों की सहायता से करवाया गया तथा २००९—१० में मालवा प्रांतिक सभा के अध्यक्ष श्री प्रदीप कुमार सिंह कासलांवाल ने इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के संग्रहालय के रूप में स्थापित करने की योजना बनाई। भारत सरकार के संस्कृति विभाग से प्राप्त अनुदान राशि एवं मालवा प्रांतिक सभा के अर्थ सहयोग से संग्रहालय की स्थापना हुई।

संग्रहालय की प्रदर्शन व्यवस्था :- संग्रहालय के दो मंजिला नवीन भवन के विशाल प्रवेशद्वार के सामने एक हॉल है, जिसमें रिसेप्शन काउण्टर, टिकिट काउण्टर व नियंत्रण कक्ष है। दूसरी और महत्त्वपूर्ण जैन तीर्थों के छायाचित्र, कुछ कलाकृतियाँ तथा उज्जैन की विरासत के मानचित्र लगाये गये हैं। पास ही में ग्रंथालय की व्यवस्था की गई है। संग्रहालय में ५२५ मूर्तियाँ हैं, जिन्हें अलग—अलग दीर्घाओं में प्रदर्शित किया गया है। भूतल पर चौबीस तीर्थंकर दीर्घा में आदिनाथ से लेकर महावीर तक चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ हैं। इस दीर्घा के पाश्र्वभाग में ऑडिटोरियम हॉल है। प्रथमतल पर मूर्तिकला दीर्घा में यक्ष यक्षणी की मूर्तियाँ तथा प्रतिमाओं के वितान हैं। द्वितीय दीर्घा में भगवान पाश्र्वनाथ की मूर्तियाँ हैं तथा तृतीय दीर्घा में भगवान आदिनाथ की। इसके अतिरिक्त शोकेस में कई विविध मूर्ति एवं शिल्प हैं। संग्रहालय की बाहरी दीवार के पास भी कई मूर्तियाँ प्रदर्शित की गई हैं। आगे भी संग्रहालय को अनेक कलाकृतियों से सुसज्जित करने की योजना है। यदि वांछनीय अर्थ सहयोग प्राप्त होता रहेगा तो नवीन तकनीक से युक्त निश्चित ही यह देश का प्रथम एक अनूठा संग्रहालय होगा।

चौबीस तीर्थंकर दीर्घा :— इस दीर्घा में पहुँचते ही हमें प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ से लेकर अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर तक चौबीस तीर्थंकर प्रतिमाएँ दिखाई देती हैं। प्रत्येक मूर्ति बड़े ही करीने से पेडस्टल पर प्रदर्शित है। इनमें प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की खड्गासन मूर्ति ७ वीं ८ वीं शताब्दी की जैन कला का उत्कृष्ट नमूना है। शेष मूर्तियों में कुछ ९ वीं १० वीं शताब्दी की जैन कला का उत्कृष्ट नमूना है। शेष मूर्तियों में कुछ ९ वीं १० वीं शतब्दी की हैं तो अधिकांश १३ वीं—१४ वीं शताब्दी या कोई उसके बाद अर्थात् १५ वीं से लेकर १७ वीं शताब्दी की हैं। आदिनाथ तथा अन्य तीर्थ तीर्थंकरों की खड्गासन मूर्तियाँ हैं, शेष पद्मासन।

मूर्ति कला दीर्घा :— इस वीथिका में प्रतिमा वितान खण्ड, मातृका, पंचबालयति, यक्षी, क्षेत्रपाल एवं अन्य कलाकृतियाँ प्रदर्शित हैं। ये प्रतिमाएँ १० वीं से १४ वीं शताब्दी तक की हैं। कुछ बलुआ पत्थर की तो कुछ संगमरमर की हैं। यक्षी पद्मावती की मूर्ति में आभूषणों वस्त्रों केशों का सुन्दर बारीक अंकन है। प्रतिमा वितान कलात्मक तथा सुन्दर हैं। संगमरमर के वितान बहुत ही कलात्मक बने हुए हैं। ग्रेनाइट पत्थर के फलक पर पंचबालयति उत्कीर्ण हैं जो शैलीगत आधार पर १२ वीं—१३ वीं शताब्दी के खड्गासन मुद्रा में है।

पार्श्वनाथ दीर्घा :— तेइसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्र्वनाथ वाराणसी के राजा अश्वसेन व रानी वामादेवी के पुत्र थे। भगवान पार्श्र्वनाथ के जीव को पूर्व भवों में तथा अंतिम भव में भी बहुत उपसर्ग सहन करने पड़े। उनके जीवन में बहुत चमत्कार भी हुए। इस कारण पार्श्वनाथ बहुत लोकप्रिय तीर्थंकर होने से उनकी मूर्तियाँ बहुतायत में प्राप्त होती हैं। खुदाई में सबसे अधिक मूर्तियाँ आदिनाथ और पार्श्र्वनाथ की प्राप्त होती हैं। संग्रहालय में ६ खड्गासन पार्श्वनाथ की कलात्मक फणयुक्त मूर्तियाँ प्रदर्शित हैं। बलुआ प्रस्तर की कुछ मूर्तियाँ गुना से संग्रहीत हुई हैं। अधिकांश प्रतिमाएँ ९ वीं, १० वीं, तथा ११ वीं शताब्दी की कुछ प्रतिमाओं में यक्ष यक्षी भी अंकित हैं।

आदिनाथ दीर्घा :— अयोध्या के राजा नाभिराय तथा मरुदेवी के पुत्र ऋषभदेव को समर्पित इस आदिनाथ दीर्घा में प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ की २१ प्रतिमाएँ खड्गासन एवं पद्मासन मुद्रा में प्रदर्शित हैं। प्रतिहार, परमार तथा मध्यकालीन कलाकृतियाँ विथिका में प्रदर्शित हैं। इस दीर्घा में भगवान आदिनाथ के जीवन चरित्र का वृत्तचित्र भी दर्शकों को दिखाया जाएगा। उक्त छहों विथिकाओं में अधिकांश जैन कला के पुरातत्व अवशेष एवं मूर्तियाँ हैं पर कुछ अन्य धर्म संबंधी कलाकृतियाँ का भी संग्रह है। जिसमें कुछ विविध कला दीर्घा में प्रदर्शित है। संग्रहालय में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कृतियों में चौबीस तीर्थंकर दीर्घा की भगवान आदिनाथ एवं भगवान महावीर की प्रतिमा, पाश्र्वनाथ दीर्घा की पद्मासन व खड्गासन प्रतिमाएँ विशेष उल्लेखनीय हैं।

 

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