अयोध्या में निर्माण कार्य प्रगति पर
नवमार्ग बनाने वाले होते हैं विरले प्राणी
उस पथ पर चलकर फिर तो बन जाते कितने ज्ञानी।।
परमपूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री चन्दनामती माताजी द्वारा लिखित यह वाक्य विश्वविभूति, जैन समाज की ज्येष्ठ-श्रेष्ठ, सर्वोच्च साध्वी गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी पर अत्यन्त सटीक बैठते हैं। सन् १९३४ में टिकैतनगर (बाराबंकी) उ. प्र. में जन्म लेकर सन् १९५२ में कुमारी कन्याओं के लिए त्याग का मार्ग प्रशस्त कर गृहत्याग करने वाली कु. मैना नाम की उस लौहबाला ने एक इतिहास की रचना कर दी।
पुन: सन् १९५३ में महावीर जी ने परमपूज्य आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज से क्षुल्लिका दीक्षा एवं सन् १९५६ में चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर महाराज के प्रथम पट्टाचार्य श्री वीरसागर महाराज से माधोराजपुरा (राज.) में आर्यिका दीक्षा लेकर अपने व्यक्तित्व-कृतित्व से सभी को आश्चर्यचकित करते हुए चौबीसों तीर्थंकर भगवंतों की जन्मभूमियों के विकास-जीर्णोद्धार का एक शंखनाद किया।
जिस क्रम में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की जन्मभूमि शाश्वत तीर्थ अयोध्या उद्धार का प्रारम्भीकरण सन् १९९३ में पूज्य माताजी के अवध विहार एवं अयोध्या के ऐतिहासिक चातुर्मास से हुआ, पुन: कई एक जन्मभूमियों एवं कल्याणक भूमियों के जीर्णोद्धार-विकास का महान कार्य पूज्य माताजी की प्रेरणा से हुआ लेकिन शाश्वत जन्मभूमि को विश्व के क्षितिज पर पहुँचाने का दृढ़ संकल्प लेकर इसके विकास में निरन्तर चार चाँद लगते रहे। इस शृंखला में सन् १९९३ से आज २०२३ तक तीर्थ विकास की यह परम्परा गतिमान है। सर्वप्रथम रायगंज मंदिर में तीन चौबीसी मंदिर, समवसरण मंदिर के निर्माण के साथ वर्तमान चौबीसी के पाँच तीर्थंकरों की जन्मभूमि टोंक पर भव्य, मनोरम जिनमंदिर बनकर अति मनोज्ञ जिनप्रतिमा विराजमान हुई |
पुन: अब २०२३ में इस तीर्थ को दिव्य ऐतिहासिक स्वरूप देने एवं उसके प्राचीन वैभव को पुनर्स्थापित करने की भावना से ८९ वर्ष की अवस्था में अपने आत्मबल से पूज्य माताजी ने पुन: संघ सहित अयोध्या की ओर विहार किया और अब वहाँ विशाल-विशाल जिनमंदिरों का निर्माण कार्य प्रगति पर है। विकास के क्रम में रायगंज परिसर में इसी अयोध्या नगरी में जन्म लेने वाले भगवान ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र भरत चक्रवर्ती जिनके नाम से इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा, जिन्होंने दीक्षा लेते ही अन्तर्मुहूर्त में दिव्य केवलज्ञान प्राप्त कर लिया’’ उनका जिनमंदिर, अनंतानंत तीर्थंकरों की जन्मभूमि की याद दिलाता तीस चौबीसी जिनमंदिर, तीन लोक की रचना, भगवान ऋषभदेव के १०१ पुत्रों का विश्वशांति जिनमंदिर, सर्वतोभद्र महल आदि का सुन्दर निर्माण कार्य चल रहा है।
शीघ्र ही यह सभी जिनमंदिर अपनी दिव्यता को लेकर अद्भुत स्वरूप में प्रगट होंगे और यह तीर्थ आकाश की ऊँचाइयों को छुएगा। पूज्य माताजी के इस दिव्य पुण्यमयी स्वप्न को साकार कर रहे हैं उनके शिष्यरत्न प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री चन्दनामती माताजी एवं तीर्थ के पीठाधीश स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी और यहाँ के कर्मठ कार्यकर्ता।
तो आइए, अपनी चंचला लक्ष्मी का सदुपयोग करते हुए अपने पुण्य को जागृत करें और तन-मन-धन से तीर्थ विकास में सहयोग कर अपने मानव जीवन को सफल बनावें।