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भगवान ऋषभदेव

June 28, 2022Alka Jain

भगवान ऋषभदेव आदिब्रह्मा भगवान ऋषभदेव वर्तमान चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर हैं, जिन्होंने वर्तमान युग में जिनधर्म की परम्परा का प्रथम प्रवर्तन किया। हुण्डावसर्पिणी काल के दोष से भगवान ने तृतीय काल में जन्म लेकर इसी काल के समाप्त होने से ३ वर्ष ८ माह और १ पक्ष पूर्व ही निर्वाण को भी प्राप्त कर लिया।…

चारित्र एवं नैतिकता

June 19, 2022Alka Jain

चारित्र एवं नैतिकता-जैनदर्शन की दृष्टि में ‘‘चारित्तं खलु धम्मो’’ यह वाक्य श्री कुंदकुंददेव का है। उन्होंने धर्म को ही चारित्र कहा है। व्याकरण की निरुक्ति के अनुसार ‘‘यच्चरति तच्चारित्रं’’ जो आचरण किया जाय वह चारित्र है और धर्म की व्युत्पत्ति में ‘‘उत्तमे सुखे य: धरति स: धर्म:’’ जो उत्तम सुख में पहुंचाता है वह धर्म…

बारह अनुप्रेक्षा (संस्कृत, हिन्दी, मराठी, कन्नड़)

June 19, 2022Alka Jain

बारह अनुप्रेक्षा (संस्कृत, हिन्दी, मराठी, कन्नड़) इसमें संस्कृत की बारह भावनाएँ श्री अमृतचंद्रसूरि कृत हैं। हिन्दी व कन्नड़ भावनाएँ मेरे द्वारा (गणिनी ज्ञानमती द्वारा) रचित हैं एवं मराठी भावना के कर्ता का नाम अज्ञात है। ये भावनाएँ तत्त्वार्थसूत्र में कथित भावनाओं के क्रम से हैं। अध्रुव अनुप्रेक्षा (अनित्य भावना) श्री अमृतचन्द्रसूरि कहते हैं- क्रोड़ी करोति…

बारह अनुप्रेक्षा

June 18, 2022Alka Jain

बारह अनुप्रेक्षा (प्राकृत) मंगलाचरण सिद्धे णमंसिदूण य झाणुत्तमखवियदीहसंसारे। दह दह दो दो य जिणे दह दो अणुपेहणा वुच्छं।।१।। जो उत्तम ध्यान के द्वारा दीर्घ संसार का नाश कर चुके हैं ऐसे सिद्ध भगवान को नमस्कार होवे। पुन: दस-दस, दो और दो ऐसे (१०±१०±२±२·२४) चौबीस तीर्थंकरों को नमस्कार करके मैं दस और दो अर्थात् बारह अनुप्रेक्षाओं…

भगवान महावीर की अहिंसा

June 18, 2022Alka Jain

भगवान महावीर की अहिंसा यत्खुलु कषाय योगा आणानां-द्रव्यभावरूपाणामं्। व्यपरोपणस्य करणं सुनिश्चिता भवति सा हिंसा।। श्री अमृतचन्द्र सूरि कषाय के योग से जो द्रव्य और भाव रूप दो प्रकार के प्राणों का घात करना है वह सुनिश्चित ही हिंसा कहलाती है अर्थात् अपने और पर के भावप्राण और द्रव्य प्राण के घात की अपेक्षा हिंसा के…

प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव

June 18, 2022Alka Jain

अयोध्या में जन्मे भगवान ऋषभदेव आदि पाँच तीर्थंकरों का परिचय ऋषभदेव के पूर्व भव-इसी जम्बूद्वीप में सुमेरु पर्वत से पश्चिम की ओर विदेह क्षेत्र में एक ‘गंधिल’ नाम का देश है, जो कि स्वर्ग के समान शोभायमान है। उस देश में हमेशा श्री जिनेन्द्र रूपी सूर्य का उदय रहता है इसीलिये वहाँ मिथ्यादृष्टियों का उद्भव…

प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव

June 18, 2022Alka Jain

भगवान ऋषभदेव एवं भगवान महावीर प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव नाभिराज और उनकी रानी मरुदेवी के पुण्यप्रभाव से इंद्र ने ‘‘अयोध्या’’ नगरी की रचना की थी। इनके समय में प्राय: कल्पवृक्षों का अभाव हो गया था, तब नाभिराज ने प्रजा को अच्छे फल आदि खाने को बताए और ईख को पेलकर रस पीने को बताया इसलिये…

जैनधर्म और आयुर्वेद

June 13, 2022Alka Jain

जैनधर्म और आयुर्वेद   आयुर्वेद हमारे देश की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है जिसे जीवन विज्ञान के रूप में स्वीकार किया गया है। हमारे दैनिक जीवन यापन की प्रत्येक क्रिया आयुर्वेद के स्वास्थ्य सम्बन्धी सिद्धान्तों पर आधारित है। यही कारण है कि उन सिद्धान्तों से विचलित होने पर उसका तत्काल प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिवूâल रूप…

विन्ध्यगिरि पर खड़े गोम्मटेश बाहुबली डग भरने को हैं

June 13, 2022Alka Jain

विन्ध्यगिरि पर खड़े गोम्मटेश बाहुबली डग भरने को हैं âर्नाटक राज्य की राजधानी बैंगलूर से लगभग १८५ किलोमीटर दूर श्रवणबेलगोल नगर की विन्ध्यगिरि पहाड़ी पर भगवान् गोम्मटेश बाहुबली की र्मूित पिछले १०२५ वर्षों से कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़ी है। अपनी उतंगता, भव्यता और सौम्यता में यह अनुपम और अद्वितीय है। हिमालय के पर्वत—शिखर एवरेस्ट जैसी…

भारतीय कला जगत में भित्ति चित्रण और लघु चित्रण की भूमिका

June 13, 2022Alka Jain

भारतीय कला जगत में भित्ति चित्रण और लघु चित्रण की भूमिका भारतवर्ष में ऐतिहासिक काल के उपलब्ध सबसे प्राचीन चित्र भित्ति-चित्रों के रूप में प्राप्त होते हैं। इस काल के प्राचीनतम चित्र जोगीमारा के गुहा मन्दिर में प्राप्त होते हैं। ये भित्ति चित्र सम्पूर्ण भारत में यत्र-तत्र बिखरे हुए हैं। ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी के…

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