अष्ट मंगलद्रव्य श्री रतनलाल कटारिया केकड़ी (अजमेर)’ जैनशास्त्रों में विभिन्न प्रकार से अष्ट मंगल द्रव्यों के उल्लेख पाये जाते हैं नीचे सप्रमाण उन पर प्रकाश डाला जाता है— १— तिलोयपण्णत्ती (अधिकार ४) भिंगार कलश दप्पण, चामर धय वियण छत्र सुपइट्ठा। इय अट्ठ मंगलाइं, अट्ठुत्तर सय जुदाणि एक्केक्कं।।७३८।। (१. भृंगार-झारी, २.कलश-लोटा, ३. दर्पण, ४.चमर, ५.ध्वजा, ६.व्यजन-पंखा,…
जानिए इंद्र ध्वज विधान की महिमा हस्तिनापुर तीर्थ पर अष्टान्हिक पर्व में चल रहा इंद्र ध्वज महामंडल विधान बंधुओं हस्तिनापुर की धरा को देखकर शायद ऐसा सोचने पर मजबूर हो जाता कि यह मध्यलोक है या स्वर्ग यहां सुबह से लेकर रात्रि तक पूजा होती रहती है। ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से हर दिन पूजा…
पंचकल्याणक इस भरतक्षेत्र के आर्य खंड में चतुर्थ काल में हमेशा २४ तीर्थंकरों का अवतार होता रहता है। कोई भी महापुरुष तीर्थंकर के पादमूल में रहकर दर्शनविशुद्धि आदि सोलह कारण्सा भावनाओं को भाते हैं और उनके प्रसाद से तीर्थंकर प्रकृति का बंध करके स्वर्गों में देवपद को प्राप्त कर लेते हैं। उन तीर्थंकर होने वाले…
पंचकल्याणक क्या है ? -कर्मयोगी ब्र. रवीन्द्र कुमार जैन भव्यात्माओं! इस भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड में चतुर्थकाल में हमेशा २४ तीर्थंकरों का जन्म होता रहता है। कोई भी महापुरुष तीर्थंकर के पादमूल में रहकर दर्शनविशुद्धि आदि सोलहकारण भावनाओं को भाते हैं और उसके प्रसाद से तीर्थंकर प्रकृति का बंध करके स्वर्गों में देवपद को प्राप्त कर…
मनोकामना सिद्धि विधान : एक समीक्षा —प्रतिष्ठाचार्य पं. नरेश कुमार जैन ‘‘कांसल’’ , जम्बूद्वीप हस्तिनापुर सिद्धान्तवाचस्पति, न्यायप्रभाकर, वात्सल्यर्मूित परम पूज्या १०५ गणिनी आर्यिका शिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी की सुशिष्या प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री १०५ चन्दनामती माताजी द्वारा रचित ‘‘मनोकामना सिद्धि विधान’’ जिनेन्द्र भक्ति पूजन की एक अनुपम कृति है। प्रस्तुत कृति की रचना पू. माताजी ने…
श्री सोलहकारण पूजा विधान समीक्षक—प्रतिष्ठाचार्य पं. प्रवीणचंद जैन शास्त्री जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर (मेरठ) उ.प्र. साहित्य समाज का दर्पण है एवं आगम आत्मा, धर्म व विश्व का तीसरा नेत्र कहा गया है जो दर्पण के बिना भी ज्ञान कराता है। सोलहकारण पूजा विधान परम पूज्य प्रज्ञाश्रमणी र्आियका श्री चंदनामती माताजी के द्वारा रचित है। १३६ पृष्ठों के इस…
कल्याणमंदिर विधान : एक समीक्षा समीक्षक—पं. शीतलचन्द जैन (पूर्व प्राचार्य), ललितपुर उ. प्र. पूज्य प्रज्ञाश्रमणी चन्दनामती माताजी द्वारा रचित ‘‘कल्याणमन्दिर विधान’’ सरल हिन्दी भाषा में है। इस विधान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि श्रावक इसे पढ़कर स्वयं इस विधान को सम्पन्न कर सकता है। सम्पूर्ण विधि विधान की रूपरेखा इस कृति में है।…
जन्माभिषेक कल्याणक ( प्रतिष्ठातिलक के आधार से ) अंकुरार्पणतः पश्चात्सप्तमे दिवसे दिवा । जन्माभिषेककल्याणपूजां कुर्याद्यथाक्रमम् ।। 1 ।। मूलवेद्यां समाराध्य पूर्ववद्यागमंडलम् । वेदीं गत्वोत्तरां तत्र वक्ष्यमाणविधानतः ।। 2 ।। पुष्पांजल्यादिकलशस्थापनांतविधिं चरेत् । ततः स्नपनवेद्यां तु पंचमंडलवर्तनम् ।। 3 ।। तत्र स्नपनपीठस्य स्थापनं तद्विधानतः । दर्भशय्यास्थिते बिंबे ततः शक्रैर्विधीयते ।। 4 ।। जिनजन्मोत्सवारोपो वस्त्रापनयनं ततः ।…
सर्वसाधु पूजा स्थापना गीताछंद जो नित्य मुक्तीमार्ग रत्नत्रय स्वयं साधें सही। वे साधु संसाराब्धि तर पाते स्वयं ही शिव मही।। वहं पे सदा स्वात्मैक परमानंद सुख को भोगते। उनकी करे हम अर्चना, वे भक्त मन मल धोवते।।१।। ॐ ह्रीं णमो लोए सव्वसाहूणं सर्वसाधुपरमेष्ठिसमूह! अत्र अवतर-अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं णमो लोए सव्वसाहूणं सर्वसाधुपरमेष्ठिसमूह! अत्र तिष्ठ…