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सोलह कारण भावना

December 2, 2022Harsh JainAdvance Diploma

सोलह कारण भावना २.१ जिन्हें बार-बार भाया जावे अर्थात् जिनका बार-बार चिन्तन किया जावे वे भावना कहलाती हैं। जैन-धर्म में २ प्रकार की भावनाएं प्रसिद्ध हैं- बारह भावना और सोलह कारण भावना। बारह प्रकार की भावनाओं का उल्लेख पूर्व में किया जा चुका है। ये सोलह भावनाएं ही तीर्थंकर प्रकृति के बन्ध का कारण हैं,…

तपाचार एवं वीर्याचार

December 2, 2022Harsh JainAdvance Diploma

तपाचार एवं वीर्याचार ३.१ कायक्लेशादि रूप बारह प्रकार के तपों में कुशल एवं अग्लान रहना तथा उत्साहपूर्वक इन तपों का अनुष्ठान करना ‘तपाचार’ है। तपाचार के बाह्य और आभ्यन्तर की अपेक्षा दो प्रकार हैं— ३.२ बाह्य तप- जो बाह्य जनों में प्रकट हो वह ‘बाह्यतप’ हैं। बाह्य—तप के छह भेद हैं— ३.२.१ अनशन तप- चार…

चारित्राचार

December 2, 2022Harsh JainAdvance Diploma

चारित्राचार २.१ प्राणिवध से निवृत्ति तथा इन्द्रियजय में प्रवृत्ति रूप चारित्र गुण से युक्त होना ‘चारित्राचार’ कहलाता है। पंचमहाव्रत, पंचसमिति और त्रयगुप्ति इस प्रकार १३ प्रकार के चारित्र को अवधारण करना ‘चारित्राचार’ कहलाता है। पंचसमिति एवं त्रय गुप्ति इनको अष्टप्रवचन माता भी कहते हैं क्योंकि जिस प्रकार माता पुत्र की रक्षा करती है वैसे ही…

दर्शनाचार, ज्ञानाचार

December 2, 2022Harsh JainAdvance Diploma

दर्शनाचार, ज्ञानाचार १.१ आचार जैनधर्म का मेरुदण्ड- श्रमण संस्कृति के प्रतिनिधि जैनधर्म का मेरुदण्ड उसका ‘आचार’ है। जिस प्रकार मेरुदण्ड मानवीय देह-यष्टि को पुष्ट एवं सुव्यवस्थित बनाने में सर्वथा कृतकार्य है, उसी प्रकार ‘आचार’ जैन धर्म को पुष्ट एवं सुप्रतिष्ठित करने में सर्वतोभावेन समर्थ है। सामाजिक तथा व्यावहारिक परिवेश के अतिरिक्त अपने वास्तिविक रूप में…

सल्लेखना

December 2, 2022Harsh JainAdvance Diploma

सल्लेखना ४.१ क्या है सल्लेखना ?- ‘सल्लेखना’ (सत् ± लेखना) अर्थात अच्छी तरह से काय और कषायों को कृश करने को ‘सल्लेखना’ कहते हैं। इसे ही समाधिमरण भी कहते हैं। मरणकाल समुपस्थित होने पर सभी प्रकार के विषाद को छोड़कर समतापूर्वक देह त्याग करना ही समाधिमरण या सल्लेखना है। जैन साधक मानव—शरीर को अपनी साधना…

ध्यान

December 2, 2022Harsh JainAdvance Diploma

ध्यान ३.१ ‘‘उत्तम संहनन वाले का एक विषय में चित्तवृत्ति का रोकना ध्यान है जो अंतर्मुहूर्त काल तक होता है।’’ आदि के वङ्कावृषभ नाराच, वङ्कानाराच और नाराच ये तीनों संहनन उत्तम माने हैं। ये तीनों ही ध्यान के साधन हैं किन्तु मोक्ष का साधन तो प्रथम संहनन ही है। नाना पदार्थों का अवलम्बन लेने से…

बारह भावना

December 2, 2022Harsh JainAdvance Diploma

बारह भावना १.१ तत्त्वों के बार-बार चिन्तन को भावना अथवा अनुप्रेक्षा कहते हैं। ये १२ प्रकार की हैं। इन भावनाओं को बार-बार भाते रहने से संसार, शरीर, भोगादि से विरक्त भाव उत्पन््ना होता है। भावना से परिणामों की उज्ज्वलता होती है, मिथ्यादर्शन का अभाव होता है, व्रतों में दृढ़ता बढ़ती है और शुभ ध्यान की…

आवश्यक क्रिया

December 2, 2022Harsh JainAdvance Diploma

आवश्यक क्रिया ५.१ जो पापादि क्रियाओं के वश में नहीं है वह अवश है अथवा जो इन्द्रिय कषाय, नोकषाय और रागद्वेषादि के आधीन नहीं है, वह साधु अवश है उस अवश का जो कार्य अनुष्ठान-आचरण है। वह आवश्यक कहलाता है। उस आवश्यक के छह भेद होते हैं- ५.१.१ सामायिक- सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, संयम और तपों से…

मुनियों की आहारशुद्धि

December 2, 2022Harsh JainAdvance Diploma

मुनियों की आहारशुद्धि दिगम्बर साधु संयम की रक्षा हेतु शरीर की स्थिति के लिए दिन में एक बार छियालीस दोष-चौदह मल दोष और बत्तीस अंतरायों को टाल कर आगम के अनुकूल नवकोटि विशुद्ध आहार ग्रहण करते हैं। इसी को पिंडशुद्धि या आहारशुद्धि कहते हैं। ४.१ छ्यालीस दोष- दिगम्बर मुनि के आहार के छ्यालीस दोष माने…

समाचार विधि एवं अन्य

December 2, 2022Harsh JainAdvance Diploma

समाचार विधि एवं अन्य ३.१ समाचार विधि- सम के भाव को समता कहते हैं अर्थात् रागद्वेष का अभाव सो समाचार कहलाता है। अथवा त्रिकाल देववंदना या पंचनमस्काररूप परिणाम समता है या सामायिक व्रत समता है, इस प्रकार के आचार को समाचार कहते हैं। अथवा सम-सम्यक्-निरतिचार मूलगुणों का अनुष्ठान आचार सो समाचार है अथवा सभी में…

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