गोत्र एवं अन्तराय कर्म की फल:स्थिति
गोत्र एवं अन्तराय कर्म की फल: स्थिति गोत्रकर्म : जीव के आचरण का परिणाम जीव का विभावरूप स्वभाव रागादि रूप परिणमने का और कर्म का स्वभाव तद्रूप परिणमाने का है। इसमें जीव का अस्तित्व अर्हं प्रत्यय से होता है तथा कर्म का अस्तित्व जीव में ज्ञान की वृद्धि और हानि से सिद्ध होता है क्योंकि…