श्री अजितनाथ से महावीर पर्यन्त तीर्थंकर परम्परा तीर्थंकर अजितनाथ इस जम्बूद्वीप के अतिशय प्रसिद्ध पूर्व विदेहक्षेत्र में सीता नदी के दक्षिण तट पर ‘वत्स’ नाम का विशाल देश है। उसके सुसीमा नामक नगर में विमलवाहन राजा राज्य करते थे। किसी समय राज्यलक्ष्मी से निस्पृह होकर राजा विमलवाहन ने अनेकों राजाओं के साथ गुरू के समीप…
वैदिक एवं श्रमण संस्कृति : एक अनुशीलन आर्य सभ्यता के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो एक तथ्य प्रकट होता है कि वैचारिक प्रतिद्वंद की स्थिति प्राचीन काल से है। भारत भूमि दो प्रमुख प्रतिद्वंदी विचार-धाराओं या संस्कृतियों की संगम-स्थली रही है। ये संस्कृतियाँ हैं-श्रमण (जैन) संस्कृति और वैदिक संस्कृति । हड़प्पा व मोहनजोदड़ो की सभ्यता…
जैनधर्म पूर्णतया आस्तिक धर्म है जैन सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक प्राणी अपने-अपने कर्मों का कर्त्ता-भोक्ता है। ईश्वर कहलाने वाले कर्मरहित भगवान किसी को सुख-दु:ख देने वाले कर्ता नहीं होते हैं। यहाँ पर ईश्वर की सत्ता में पूर्णतया आस्था रखने वाले एवं उसकी उपासना करने वाले जैन सिद्धान्त के अनुसार यह बतलाया जा रहा है कि…
जैनधर्म की ऐतिहासिकता प्रत्येक देश और जाति का अपना एक सांस्कृतिक इतिहास होता है। इतिहास तथ्यों का संकलन मात्र नहीं है, अपितु परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में उत्थान और पतन, विकास और अवनति, जय और पराजय की पृष्ठभूमि और तथ्य संकलन इतिहास कहलाता है। देश और जाति के समान व्यक्ति और धर्म का भी इतिहास होता…
जैनधर्म का मूल मंत्र-णमोकार महामंत्र णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।। जैनधर्म में व्यक्ति पूजा का नहीं, गुण पूजा का महत्व है। गुणों की पूजा को भी प्रश्रय इसलिए दिया गया है, ताकि वे गुण हमें प्राप्त हो जाये। गुण पूजा का प्रतीक णमोकार महामंत्र है। यह मंत्र किसी ने…