12. ज्ञानमार्गणा
ज्ञानमार्गणा (बारहवाँ अधिकार) ज्ञान का स्वरूप जाणइ तिकालविसए, दव्वगुणे पज्जए य बहुभेदे। पच्चक्खं च परोक्खं, अणेण णाणं ति णं बेंति।।९५।। जानाति त्रिकालविषयान् द्रव्यगुणान् पर्यायांश्च बहुभेदान्। प्रत्यक्ष च परोक्षमनेन ज्ञानमिति इदं ब्रुवन्ति।।९५।। अर्थ—जिसके द्वारा जीव त्रिकालविषयक भूत, भविष्यत्, वर्तमान काल सम्बंधी समस्त द्रव्य और उनके गुण तथा उनकी अनेक प्रकार की पर्यायों को जाने…