Jambudweep - 01233280184
encyclopediaofjainism.com
HindiEnglish
Languages
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
  • Special Articles
  • Puja
  • Tirths
  • Sadhu Sadhvis
    • Gyanmati Mataji
    • Chandanamati Mataji

१. प्रकृति प्रकरण!

June 25, 2020Lord ShantinathJeev Kaand Saar, Jeevkaand

प्रकृति प्रकरण “मंगलाचरण” पणमिय सिरसा णेमिं गुणरयणविभूसणं महावीरं। सम्मत्तरयणणिलयं पयडिसमुक्कित्तणं वोच्छं।।१।। प्रणम्य शिरसा नेमिं गुणरत्नविभूषणं महावीरम्। सम्यक् त्वरत्ननिलयं प्रकृतिसमुत्कीर्तंनं वक्ष्यामि।।१।। अर्थ—मैं नेमिचंद्र आचार्य, ज्ञानादिगुणरूपी रत्नों के आभूषणों को धारण करने वाले, मोक्षरूपी महालक्ष्मी को देने वाले, सम्यक्त्वरूपी रत्न के स्थान ऐसे श्रीनेमिनाथ तीर्थंकर को मस्तक नवा-प्रणाम कर, ज्ञानावरणादि कर्मों की मूल व उत्तर दोनों प्रकृतियों…

१२.ज्ञानमार्गणा!

August 4, 2017Lord ShantinathJeev Kaand Saar, Jeevkaand

[[श्रेणी:गोम्मटसार_जीवकाण्ड_का_संक्षिप्त_सार]] ==ज्ञानमार्गणा== (बारहवाँ अधिकार) ज्ञान का स्वरूप जाणइ तिकालविसए, दव्वगुणे पज्जए य बहुभेदे। पच्चक्खं च परोक्खं, अणेण णाणं ति णं बेंति।।९५।। जानाति त्रिकालविषयान् द्रव्यगुणान् पर्यायांश्च बहुभेदान्। प्रत्यक्ष च परोक्षमनेन ज्ञानमिति इदं ब्रुवन्ति।।९५।। अर्थ—जिसके द्वारा जीव त्रिकालविषयक भूत, भविष्यत्, वर्तमान काल सम्बंधी समस्त द्रव्य और उनके गुण तथा उनकी अनेक प्रकार की पर्यायों को जाने उसको…

१८.संज्ञी मार्गणा!

August 4, 2017Lord ShantinathJeev Kaand Saar, Jeevkaand

[[श्रेणी:गोम्मटसार_जीवकाण्ड_का_संक्षिप्त_सार]] ==संज्ञी मार्गणा== (अठारहवाँ अधिकार) संज्ञि मार्गणा का स्वरूप णोइंदियआवरणखओवसमं तज्जबोहणं सण्णा। सा जस्स सो दु सण्णी, इदरो सेिंसदिअवबोहो।।१५९।। नोइन्द्रियावरणक्षयोपशमस्तज्जबोधनं संज्ञा। सा यस्य स तु संज्ञी इतर: शेषेन्द्रियावबोध:।।१५९।। अर्थ — नोइन्द्रियावरण कर्म के क्षयोपशम को या तज्जन्य ज्ञान को संज्ञा कहते हैं। यह संज्ञा जिसके हो उसको संज्ञी कहते हैं और जिनके यह संज्ञा न…

१५.लेश्यामार्गणा!

August 4, 2017Lord ShantinathJeev Kaand Saar, Jeevkaand

[[श्रेणी:गोम्मटसार_जीवकाण्ड_का_संक्षिप्त_सार]] ==लेश्यामार्गणा== (पन्द्रहवाँ अधिकार) left “50px”]] right “50px”]] left “50px”]] right “50px”]] left “50px”]] right “50px”]] left “50px”]] right “50px”]] left “50px”]] right “50px”]] left “50px”]] right “50px”]] left “50px”]] right “50px”]] left “50px”]] right “50px”]] लेश्या का स्वरूप लिपइ अप्पीकीरइ, एदीए णियअपुण्णपुण्णं च। जीवो त्ति होदि लेस्सा लेस्सागुणजाणयक्खादा।।१३२।। लिंपत्यात्मीकरोति एतया निजापुण्यपुण्यं च। जीव इति…

१७.सम्यक्त्व मार्गणा!

August 4, 2017Lord ShantinathJeev Kaand Saar, Jeevkaand

[[श्रेणी:गोम्मटसार_जीवकाण्ड_का_संक्षिप्त_सार]] == सम्यक्त्व मार्गणा== (सत्रहवाँ अधिकार) सम्यक्त्व का स्वरूप छप्पंचणवविहाणं, अत्थाणं जिणवरोवइट्ठाणं। आणाए अहिगमेण य, सद्दहणं होइ सम्मत्तं।।१४९।। षट्पंचनवविधानामर्थानां जिनवरोपदिष्टानाम्। आज्ञया अधिगमेन च श्रद्धानं भवति सम्यक्त्वम्।।१४९।। अर्थ—छह द्रव्य, पाँच अस्तिकाय, नव पदार्थ इनका जिनेन्द्रदेव ने जिस प्रकार से वर्णन किया है उस ही प्रकार से इनका जो श्रद्धान करना उसको सम्यक्त्व कहते हैं। यह दो…

१३.संयममार्गणा!

August 4, 2017Lord ShantinathJeev Kaand Saar, Jeevkaand

[[श्रेणी:गोम्मटसार_जीवकाण्ड_का_संक्षिप्त_सार]] == संयममार्गणा== (तेरहवाँ अधिकार) left “50px”]] right “50px”]] left “50px”]] right “50px”]] left “50px”]] right “50px”]] left “50px”]] right “50px”]] left “50px”]] right “50px”]] left “50px”]] right “50px”]] left “50px”]] right “50px”]] संयम का स्वरूप वदसमिदिकसायाणं, दंडाण तहिंदियाण पंचण्हं। धारणपालणणिग्गहचागजओ संजमो भणिओ।।११९।। व्रतसमितिकषायाणां दण्डानां तथेन्द्रियाणां पंचानाम्। धारणपालननिग्रहत्यागजय: संयमो भणित:।।११९।। अर्थ — अहिंसा, अचौर्य, सत्य,…

०९.योगमार्गणा!

August 2, 2017Lord ShantinathJeev Kaand Saar, Jeevkaand

[[श्रेणी:गोम्मटसार_जीवकाण्ड_का_संक्षिप्त_सार]] == योगमार्गणा== (नवम अधिकार) योग का स्वरूप पुग्गलविवाइदेहोदयेण, मणवयणकायजुत्तस्स। जीवस्स जा हु सत्ती, कम्मागमकारणं जोगो।।७२।। पुद्गलविपाकिदेहोदयेन मनोवचनकाययुक्तस्य। जीवस्य या हि शक्ति: कर्मागमकारणं योग:।।७२।। अर्थ—पुद्गलविपाकी शरीर नामकर्म के उदय से मन, वचन, काय से युक्त जीव की जो कर्मों के ग्रहण करने में कारणभूत शक्ति है उसको योग कहते हैं। भावार्थ—आत्मा की अनंत शक्तियों में…

०८.कायमार्गणा!

August 1, 2017Lord ShantinathJeev Kaand Saar, Jeevkaand

[[श्रेणी:गोम्मटसार_जीवकाण्ड_का_संक्षिप्त_सार]] ==कायमार्गणा== (अष्टम अधिकार) काय का स्वरूप जाईअविणाभावी, तसथावरउदयजो हवे काओ। सो जिणमदम्हि भणिओ, पुढवीकायादिछब्भेयो।।५९।। जात्यविनाभावित्रसस्थावरोदयजो भवेत् काय:। स जिनमते भणित: पृथ्वीकायादिषड्भेद:।।५९।। अर्थ—जाति नाम कर्म के अविनाभावी त्रस और स्थावर नामकर्म के उदय से होने वाली आत्मा की पर्याय को जिनमत में काय कहते हैं। इसके छह भेद हैं—पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रस।…

०६.मार्गणा अधिकार-गति मार्गणा!

July 31, 2017Lord ShantinathJeev Kaand Saar, Jeevkaand

[[श्रेणी:गोम्मटसार_जीवकाण्ड_का_संक्षिप्त_सार]] ==मार्गणा अधिकार-गति मार्गणा== मार्गणा का लक्षण जाहि व जासु व जीवा, मग्गिज्जंते जहा तहा दिट्ठा। ताओ चोदस जाणे, सुयणाणे मग्गणा होंति।।४४।। यभिर्वा यासु वा जीवा मृग्यन्ते यथा तथा दृष्टा:। ताश्चतुर्दश जानीहि श्रुतज्ञाने मार्गणा भवन्ति।।४४।। अर्थ—प्रवचन में जिस प्रकार से देखे हों उसी प्रकार से जीवादि पदार्थों का जिन भावों के द्वारा अथवा जिन पर्यायों…

०७.इन्द्रिय मार्गणा!

July 31, 2017Lord ShantinathJeev Kaand Saar, Jeevkaand

[[श्रेणी:गोम्मटसार_जीवकाण्ड_का_संक्षिप्त_सार]] == इन्द्रिय मार्गणा== (सप्तम अधिकार) इंद्रिय का स्वरूप अहमिंदा जह देवा, अविसेसं अहमहंति मण्णंता। ईसंति एक्कमेक्कं, इंदा इव इन्दिये जाण।।५३।। अहमिन्द्रा यथा देवा अविशेषमहमहमिति मन्यमाना:। ईशते एवैकमिन्द्रा इव इन्द्रियाणि जानीहि।।५३।। अर्थ—जिस प्रकार अहमिन्द्र देवों में दूसरे की अपेक्षा न रखकर प्रत्येक अपने-अपने को स्वामी मानते हैं, उसी प्रकार इंद्रियाँ भी हैं। भावार्थ”—इंद्र के समान…

Posts navigation

1 2 3 >
Asiausa: