पुण्य और पाप के एकांत का निराकरण एवं स्याद्वाद की सिद्धि
पुण्य और पाप के एकांत का निराकरण एवं स्याद्वाद की सिद्धि भाग्य दो प्रकार का है-एक पुण्य और दूसरा पाप। वही प्राणियों के सुख और दु:ख का कारण है। ‘‘सद्वेद्यशुभायुर्नामगोत्राणि पुण्यं, इतरत्पापं’’ सातावेदनीय, शुभ आयु, शुभ नाम और उच्च गोत्र, ये पुण्य रूप हैं और इनसे विपरीत असातावेदनीय, अशुभ आयु, अशुभ नाम और नीच गोत्र…