

इस प्रथम जम्बूद्वीप में, है भरतक्षेत्र सुहावना।
चिन्मूरति कल्पतरू जिनजी, 
मलयागिरि चंदन गंधमयी, जिन पूजत ताप नशे सबही।। 
सित अक्षत धौत लिये कर में, जिन आगे पुँज धरूँ शुचि मैं।।
मचकुंद गुलाब जुही सुमना, जिनपाद सरोज जजूँ सुमना।। 
घृतयुक्त मधुर पकवान भरे, जिन पूजत भूख पिशाचि हरे।। 
करपूर प्रदीप उद्योत करे, जिनपाद जजत अज्ञान हरे।।
दशगंध सुधूप जले रुचि से, सब कर्मकलंक भगें झट से।। 
फल सेव बादाम लिये कर में, जिन अर्चत श्रेष्ठ लहूँ वर मैं।। 
जल गंध प्रभृति वसु द्रव्य लिया, निज ‘ज्ञानमती’ हित अर्घ दिया।।
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right”70px”]] ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णामावस्यायां श्रीअजितनाथजिनगर्भकल्याणकाय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
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right”70px”]] ॐ ह्रीं माघशुक्लादशम्यां श्रीअजितनाथजिनजन्मकल्याणकायअर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
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right”70px”]] ॐ ह्रीं माघशुक्लानवम्यां श्रीअजितनाथजिनदीक्षाकल्याणकाय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
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70px”right]] ॐ ह्रीं पौषशुक्लाएकादश्यां श्रीअजितनाथजिनकेवलज्ञानकल्याणकाय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा। 


नित्य निरंजन देव, अखिल अमंगल को हरें। 