ज्ञानमती माताजी की अयोध्या यात्रा चतुर्थकालीन दृश्य प्रस्तुत करने वाली है ! पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी , चन्दनामती माताजी एवं सम्पूर्ण आर्यिका संघ का मंगल विहार अयोध्या शाश्वत तीर्थ की ओर चल रहा है । आज १४ नवम्बर २०२२ को संघ बरेली ( उ०प्र०) पहुँच रहा है , कल १५ नवंबर को जैनधर्मशाला-बरेली में…
भगवान महावीर महावीर विवरण पांच नाम वीर, अतिवीर, वर्धमान, सन्मति,महावीर ऐतिहासिक काल 599-527 ई॰ पू॰ शिक्षाएं अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकान्तवाद पूर्व तीर्थंकर पार्श्वनाथ गृहस्थ जीवन वंश इक्ष्वाकु पिता राजा सिद्धार्थ माता त्रिशला पंचकल्याणक जन्म चैत्र शुक्ल त्रयोदशी जन्म स्थान कुंडलपुर मोक्ष कार्तिक कृष्ण अमावस्या मोक्ष स्थान पावापुरी, जिला नालंदा, बिहार लक्षण शरीर का रंग स्वर्ण चिन्ह सिंह आयु…
दिगम्बर जैन आम्नाय में मंत्र व्यवस्था सारांश द्वादशांग जिनवाणी के बारहवें दृष्टिवादांग के १४ पूर्वों में १०वाँ विद्यानुवाद पूर्व है जो तंत्र,मंत्र एवं यंत्र से सम्बद्ध है। आज भी मानव अलौकिक एवं आध्यामिक शक्तियों की आराधना में मंत्रों का प्रयोग करता है किन्तु मंत्र क्या हैं? मंत्रों का स्वरूप एवं उपयोग सा हो? क्या दिगम्बर…
सोलहकारण भावनाएँ (षट्खण्डागम ग्रंथ के आधार से) दिगम्बर जैन परम्परा में ‘षट्खण्डागम ग्रंथ’ सिद्धान्त के सर्वोपरि ग्रंथ माने हैं। इस षट्खण्डागम में छह खण्डों के-१. जीवस्थान, २. क्षुद्रकबंध, ३. बंधस्वामित्वविचय, ४. वेदनाखण्ड, ५. वर्गणाखण्ड और ६. महाबंध, ये नाम हैं। इनमें से षट्खण्डागम का जो तृतीय खण्ड है-‘‘बंधस्वामित्वविचय’’ इस ग्रंथ में जीव के साथ कर्मों…
देवदर्शन की महिमा फलं ध्यानाश्चतुर्थस्य षष्ठस्योद्यानमात्रत:। अष्टमस्य तदारम्भे गमने दशमस्य तु।।१७८।। द्वादशस्य तत: किंचिन्मध्ये पक्षोपवासजम्। फलं मासोपवासस्य लभते चैत्यदर्शनात्।।१७९।। चैत्यङ्गणं समासाद्य याति षाण्मासिकं फलम्। फलं वर्षोपवासस्य प्रविश्य द्वारमश्नुते।।१८०।। फलं प्रदक्षिणीकृत्य भुंक्ते वर्षशतस्य तु। दृष्ट्वा जिनास्यमाप्नोति फलं वर्षसहस्रजम्।।१८१।। अनन्तफलमाप्नोति स्तुतिं कुर्वन् स्वभावत:। न हि भक्तेर्जिनेन्द्राणां विद्यते परमुत्तमम्।।१८२।। जिनेन्द्रदेव की प्रतिमा के दर्शन की भावना करते ही…
श्री ऋषभदेव के पुत्र ‘भरत’ से ‘भारत’ तीर्थंकर ऋषभदेव राज्यसभा में सिंहासन पर विराजमान थे, उनके चित्त में विद्या और कला के उपदेश की भावना जाग्रत हो रही थी। इसी बीच में ब्राह्मी और सुंदरी दोनों कन्याओं ने आकर पिता को नमस्कार किया। पिता ने आशीर्वाद देते हुये बड़े प्यार से दोनों कन्याओं को अपनी…
अयोध्या तीर्थ की महिमा भगवान ऋषभदेव जब गर्भ में आने को थे, महाराजा नाभिराय एवं महारानी मरुदेवी के आंगन में छह महीने पहले से ही रत्नों की वर्षा शुरू हो गई थी। सौधर्मेन्द्र की आज्ञा से कुबेर प्रतिदिन माता के आंगन में साढ़े सात करोड़ रत्नों की वर्षा करता था। आषाढ़ कृ. २ को भगवान…