जीव दया की कहानी लेखिका-प्रज्ञाश्रमणी चंदनामती माताजी तर्ज -ये परदा हटा दो ……………….. सुनो जीवदया की कहानी , इक मछुवारे की जुबानी , इक मछली को दे जीवन इसने जीवन पाया था । the story of compossion , is called indian tradition one fisherman had given once the life to the fish . इक मुनि…
दया और करुणा कलकत्ता नगरी। एक आदमी घूमने निकला। रास्ते में एक बूढ़े को चिंता में मग्न सिर झुकाये देखा तो उनसे रहा नहीं गया। हमदर्दी से पूछा—भाई तुम इतने परेशान क्यों हो ? बूढ़े ने अनजान व्यक्ति को अपना दुखड़ा सुनाना उचित न समझ कर टालने की कोशिश की। परन्तु आगन्तुक ने और अधिक…
मेरी माँ मेरी माँ की सिर्फ एक ही आँख थी और इसीलिए मैं उनसे बेहद नफ़रत करता था ! वो फुटपाथ पर एक छोटी सी दुकान चलाती थी ! उनके साथ होने पर मुझे शर्मिंदगी महसूस होती थी ! एक बार वो मेरे स्कूल आई और मैं फिर से बहुत शर्मिंदा हुआ ! वो मेरे…
जान बची तो लाखों पाये (भक्तामर के तृतीय व चतुर्थ काव्य से सम्बन्धित कथा) ‘‘हे स्वामिन्! नमोऽस्तु, नमोऽस्तु; नमोऽस्तु, अगच्छ, अगच्छ, अगच्छ; अन्न-जल शुद्ध है; स्वामिन् आईये!’’… की मधुर स्वर लहरी एक बार पुनः वायुमंडल में थिरक उठी! नव यौवन दम्पत्ति के सु-मधुर कण्ठों से एक साथ निकला हुआ यह स्वर केवल जड़ शब्दों के…
बुढ़ापे के बाद जाना है एक सम्राट था। उसका परिवार बड़ा विराट था। विराट इस मायने में था कि उसके सौ पुत्र थे। सम्राट बूढ़ा हो गया पहले के जमाने में बुढ़ापा देखकर लोगों को चिंता हो जाती थी परलोक की। वह सोचने लगता था कि बुढ़ापे का अर्थ है मौत का पैगाम। जन्म के…
रक्षाबंधन लेखिका – गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी 1 – श्री अंकपनाचार्यादि ७०० मुनियों का उज्जयिनी में प्रवास दिगंबर गुरू श्री अकंपन आचार्य महाराज शहर और ग्रामों में विहार करते हुये उज्जयिनी नगरीके उद्यान में जाकर ठहर जाते है। उनके साथ सात सौ मुनियों का विषाल संघ है। इतने बडे़ संघ के अधिनायक आचार्य अपने निमित्तज्ञान…
सातवां व्यसन (परस्त्री सेवन नरक का द्वार है) अपनी विवाहित स्त्री के सिवाय दूसरी स्त्रियों के साथ रमण करना—व्यभिचार करना परस्त्री सेवन नाम का व्यसन है। परस्त्री की अभिलाषा मात्र से ही पाप लगता है, तो फिर उसके सेवन करने से तो महापाप का ही बन्ध होता है। इस व्यसन में रावण का नाम पौराणिक…
रक्षा बंधन पर्व कथा प्रस्तुति—श्रीमती त्रिशला जैन, लखनऊ शम्भु छंद रक्षाबंधन पर्वराज की सुनो कथा है मनोहारी। विष्णु मुनि वामन बन करके हुए उपद्रव परिहारी।। एक शिखर पर ध्यान रुढ़ थे महामुनि अवधिज्ञानी। इस नक्षत्र कांपता देखा मुख से आह ध्वनि निकली।।१।। पास में एक क्षुल्लक बैठे थे उनके यह ध्वनि कान पड़ी। सविनय नमस्कार…