कुंडलपुर दिगंबर जैन समिति!
कुंडलपुर दिगंबर जैन समिति – जम्बूद्वीप- हस्तिनापुर संस्था के अन्तर्गत कुंडलपुर दिगंबर जैन समिति बनी है , जो भगवान महावीर जन्मभूमि – कुंडलपुर( नालंदा- बिहार ) में निर्मित नंद्यावर्त महल नामक तीर्थ का संचालन करती है ।
कुंडलपुर दिगंबर जैन समिति – जम्बूद्वीप- हस्तिनापुर संस्था के अन्तर्गत कुंडलपुर दिगंबर जैन समिति बनी है , जो भगवान महावीर जन्मभूमि – कुंडलपुर( नालंदा- बिहार ) में निर्मित नंद्यावर्त महल नामक तीर्थ का संचालन करती है ।
कुण्डलपुर महोत्सव-भगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर में प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को भगवान महावीर जनमजयन्ती के दिन बिहार सरकार के द्वारा कुण्डलपुर महोत्सव आयोजित किया जाता है ।
पदविहार-दिगंबर जैन मुनि- आर्यिका हमेशा नंगे पैर पदविहार करते हैं । वे कभी मोटर- गाड़ी आदि वाहन का प्रयोग नहीं करते हैं ।
सद्गृहस्थ भव्यात्माओं! आगम ग्रंथों में पाक्षिक श्रावक का विशेष लक्षण बताते हुए आचार्यों ने कहा है कि जो श्रावक जिनेन्द्रदेव की आज्ञा से निरन्तर ही विषयों को छोड़ने योग्य समझता हुआ भी मोह के निमित्त से उन्हें छोड़ने के लिए असमर्थ है। उस गृहस्थ के लिए ही गृहस्थ धर्म पालने की अनुमति है। उस गृहस्थ…
नंदीश्वर पंक्ति व्रत विधि इस व्रत में ५६ उपवास और ५२ पारणाएं होती हैं तथा १०८ दिन में पूर्ण होता है। इसमें दधिमुख पर्वत संबंधी एक उपवास १ पारणा के क्रम से ४ उपवास ४ पारणा होने पर अंजनगिरि संबंधी बेला होता है। पुन: पारणा करके ८ रतिकर संबंधी ८ उपवास एकांतर से होते हैं।…
समवसरण यह नीलमणि शिला पर निर्मित रहता है। इसकी चारों दिशाओं में मानस्तंभ होते हैं,आठ भूमिया होती है और बारह सभा होती है इस बारह सभा में मुनि,आर्यिका श्रावक, श्राविका ,देवी, देव और जातविरोधी पशु एक साथ बैठकर भगवान का दिव्य उपदेश सुनते है
अष्टसहस्री –आचार्य श्री विद्यानंदि स्वामी द्वारा आठ हज़ार श्लोक प्रमाण लिखी गई संस्कृत टीका का नाम है – अष्टसहस्री
गर्भ कल्याणक-तीर्थंकर भगवान जब माता के गर्भ में आते हैं तब उनकी माता रात्रि के पिछले प्रहर में १६ स्वप्न देखती हैं और स्वर्ग से इन्द्र – देवता आकर महोत्सव मनाते हैं , उसी को गर्भकल्याणक कहते हैं ।
जिस प्रकार कीड़ा कपड़ों को नष्ट कर देता है , उसी प्रकार ईर्ष्या मनुष्य को नष्ट कर देती है ।
”स्वरूपाचरण चारित्र” यहाँ आप स्वरूपाचरण चारित्र के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। मैंने अनेक ग्रंथों का स्वाध्याय किया है, अपने दीक्षा गुरु आचार्यश्री वीरसागर महाराज के मुख से बहुत कुछ सुना है लेकिन स्वरूपाचरण चारित्र का नाम नहीं सुना। अनगार धर्मामृत, समयसार, प्रवचनसार आदि ग्रंथों में भी कहीं स्वरूपाचरण का नाम नहीं आया है। हाँ,…