पूज्य आर्यिका श्री रत्नमती माताजी का परिचय आदिब्रह्मा भगवान ऋषभदेव की जन्मभूमि अयोध्या और उसके आस-पास के क्षेत्र को भी अवध के नाम से जाना जाता है । वैसे इन प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव और उनके प्रथम पुत्र चक्रवर्ती सम्राट् भरत के समय वह अयोध्या नगरी १२ योजन लम्बी थी अत: ९६ मील होने से…
स्वस्तिश्री कर्मयोगी पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी का अंतरंग एवं बहिरंग परिचय समाज में सामान्य श्रावकों की संख्या एवं भूमिका अवश्य ही समाज के विकास के लिए लाभदायक सिद्ध होती है। लेकिन कुछ अद्भुत प्रतिभासम्पन्न विरले महामनाओं की खोज की जावे, तो समाज में ऐसे पुरुष जिन्हें महापुरुष की संज्ञा दी जा सकती है, वे…
मुम्बई के विद्वान डा. अरिहन्त कुमार जैन ‘अनुरागी’ – डी-2/526, लोकमान्य CHS, सेक्टर-5, चारकोप, कांदिवली (पश्चिम), मुम्बई-400067 मो.:-9967954146 ईमेल – anuraagi4u@gmail.com पं. भरतकुमार तेजपाल काला – डी-317,एकता वुड,राहेजा इस्टेट, कुलुपबाडी, नेशनल पार्क के पास बोरीवली फैक्सः 022-28462435 प्रवचनकार फोन: 022-28462435(का.) मो.: 092242-96198 मुम्बई-400066(महा.) श्री दर्शन लाड़ – बी-27/105,सुन्दर नगर कालोनी, फोन: 022-26142830, 26122061 फैक्स: 022-26132…
एक बेमिसाल व्यक्तित्व- गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी लेखक – प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जैन – फिरोजाबाद माताजी तो बेजोड़ हैं जैसे रसों में इक्षुरस और नदियों में गंगा श्रेष्ठ है, वैसे ही कन्याओं में मैना श्रेष्ठ थी। जैसे पुष्पों में कमल और सुगंधित पदार्थों में चन्दन श्रेष्ठ है, वैसे ही क्षुल्लिकाओं में वीरमती श्रेष्ठ थीं। जैसे ताराओं…
जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी परम पूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी जैसी महान गुरु की महान शिष्या प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकरात्न श्री चंदनामती माताजी का विशेष परिचय इस आलेख में आर्यिका श्री स्वर्णमती माताजी दवारा प्रस्तुत किया गया है | पूज्य चंदनामती माताजी वर्तमान युग की वह महान शिष्यारत्न हैं जिन्होंने ११ वर्ष की उम्र से लेकर आज तक सदा गुरुआज्ञा को सर्वोपरि मानकर ख्याति , लाभ , पूजा की भावना से दूर रहकर एक आदर्श उपस्थित किया है , यहाँ उनके विराट व्यक्तित्व को कतिपय शब्दों में बताया गया है |
पूज्य पीठाधीश क्षुल्लकरत्न श्री मोतीसागर महाराज का संक्षिप्त परिचय -डॉ. देवेन्द्र कुमार जैन ‘वास्तु सलाहकार’, भोपाल (म.प्र.) गुरु और शिष्य के उपकार तथा कृतज्ञता के सम्राट चन्द्रगुप्त और एकलव्य जैसे अनेकों उदाहरण हमें प्राचीन इतिहास में मिल जाते हैं किन्तु आज के पंचमकाल में जब भौतिकता की चकाचौंध में डूबा और स्वार्थ में अंधा व्यक्ति…