स्वस्तिश्री कर्मयोगी पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी का अंतरंग एवं बहिरंग परिचय समाज में सामान्य श्रावकों की संख्या एवं भूमिका अवश्य ही समाज के विकास के लिए लाभदायक सिद्ध होती है। लेकिन कुछ अद्भुत प्रतिभासम्पन्न विरले महामनाओं की खोज की जावे, तो समाज में ऐसे पुरुष जिन्हें महापुरुष की संज्ञा दी जा सकती है, वे…
श्री पद्मप्रभु चालीसा दोहा ऋषभदेव सुत भरत अरु, बाहुबली भगवान। इनके चरणों में करूँ, शत-शत बार प्रणाम।।१।। नेमिनाथ अरु पार्श्वप्रभु, को वंदूँ त्रयबार। विदुषी माता सरस्वती, की वाणी अनुसार।।२।। श्री पद्मप्रभु देव का, यह चालीसा पाठ। लिखने से सुख प्राप्त हो, मुझको है विश्वास।।३।। चौपाई पद्मप्रभू जी लाल वर्ण के, जन्मे थे…
श्री अनन्तनाथ चालीसा दोहा श्री अनन्त जिनराज हैं, गुण अनन्त की खान। अंतक का भी अंत कर, बने सिद्ध भगवान।।१।। गुण अनन्त की प्राप्ति हित, करूँ अनन्त प्रणाम। अनन्त गुणाकर नाथ! तुम, कर दो मम कल्याण।।२।। विदुषी वागीश्वरी यदि, दे दें आशिर्वाद। पूरा होवे शीघ्र ही, यह चालीसा पाठ।।३।। चौपाई श्री अनन्तजिनराज…
श्री विमलनाथ चालीसा दोहा श्री अरिहंत जिनेश को, वंदूँ मन-वच-काय। सिद्धप्रभू के पदकमल, नमूँ-नमूँ सिरनाय।।१।। विमलनाथ भगवान को, मनमंदिर में धार। लिखने का साहस करूँ, यह चालीसा पाठ।।२।। हे जिनवाणी भारती, रहना मेरे पास। जब तक पूरा हो नहीं, प्रभु का यह गुणगान।।३।। चौपाई ऋषभदेव से वासुपूज्य तक, बारह तीर्थंकर हैं सुखकर।।१।।…
श्री चन्द्रप्रभु चालीसा दोहा वीतराग-सर्वज्ञ अरु, हित उपदेशी जान। वे ही सच्चे देव हैं, उनको करूँ प्रणाम।।१।। पूर्वापर दोषों रहित, सच्चा आगम शास्त्र। ज्ञान प्राप्ति के हेतु ही, नमूँ नमाकर माथ।।२।। वृषभसेन को आदि ले, श्री गौतमपर्यन्त। सब ही गणधर गुरु नमूँ, होवे भव दु:ख अंत।।३।। चौपाई जय जय चन्द्रप्रभू जिनराजा, चन्द्रपुरी…
श्री श्रेयांसनाथ चालीसा दोहा युग की आदी में हुए, ऋषभदेव भगवान। उनके चरणों में करूँ, बारम्बार प्रणाम।।१।। गौतम गणधर देव को, वंदूँ मन-वच-काय। उनके जैसी ऋद्धियाँ, हमको भी मिल जाएँ।।२।। शारद माता को नमूँ, जिनसे मिलता ज्ञान। लिखने की शक्ती मिले, दूर होय अज्ञान।।३।। चौपाई श्री श्रेयांस जगत के स्वामी, कीर्ति तुम्हारी…
श्री सुपार्श्वनाथ चालीसा दोहा चार घातिया कर्म को, नाश बने अरिहंत। अष्टकर्म को नष्टकर, बने सिद्ध भगवंत।।१।। छत्तिस मूलगुणों सहित, श्री आचार्य महान। पच्चिस गुण संयुक्त हैं, उपाध्याय गुरु जान।।२।। गुण अट्ठाइस साधु के, ये पाँचों परमेष्ठि। इनको वंदूँ मैं सदा, श्रद्धा भक्ति समेत।।३।। बिना सरस्वती मात के, होता नहिं कुछ ज्ञान। इसीलिए उनको…
श्री शीतलनाथ चालीसा दोहा श्री शीतल तीर्थेश को, जो वंदे कर जोड़। उसका मन शीतल बने, वच भी शीतल होय।।१।। रोग-शोक का नाश हो, तन शीतल हो जाए। फिर क्रमश: त्रैलोक्य में, शीतलता आ जाए।।२।। कल्पवृक्ष के चिन्ह से, सहित आप भगवान। इसीलिए इच्छा सभी, पूरी हों तुम पास।।३।। शंभु छंद एक…