01. मंगल स्तोत्र 02. समवसरण पूजा 03. तीर्थंकर गुण पूजा 04. गणधर पूजा 05. सर्वसाधु पूजा 06. आर्यिका पूजा 07. बड़ी जयमाला
बड़ी जयमाला -दोहा- अति अद्भुत लक्ष्मी धरें, समवसरण प्रभु आप। तुम धुनि सुन भविवृन्द नित, हरें सकल संताप।।१।। -शंभु छंद- जय जय त्रिभुवनपति का वैभव, अन्तर का अनुपम गुणमय है। जो दर्श ज्ञान सुख वीर्यरूप, आनन्त्य चतुष्टय निधिमय है।। बाहर का वैभव समवसरण, जिसमें असंख्य रचना मानीं। जब गणधर भी वर्णन करते, थक जाते मनपर्यय…
पूजा नं.-5 आर्यिका पूजा —अथ स्थापना-गीता छंद— श्री ऋषभप्रभु के समवसृति में आर्यिकायें मान्य हैं। गणिनी प्रथम श्रीमात ब्राह्मी सर्व में हि प्रधान हैं।। व्रतशील गुण से मंडिता इंद्रादि से पूज्या इन्हें। आह्वान करके पूजहूँ त्रयरत्न से युक्ता तुम्हें।।१।। ॐ ह्रीं अर्हं श्रीऋषभदेवसमवसरणस्थितगणिनीब्राह्मीप्रमुखसर्वार्यिकासमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
पूजा नं.-4 सर्वसाधु पूजा —अथ स्थापना-गीता छंद— जो साधु तीर्थंकर समवसृति में सदा ही तिष्ठते। वे सात भेदों में रहें निज मुक्तिकांता प्रीति तें।। ऋषि पूर्वधर शिक्षक अवधिज्ञानी प्रभू केवलि वहां। विक्रियाधारी विपुलमतिवादी उन्हें पूजूँ यहाँ।। ॐ ह्रीं अर्हं श्रीऋषभदेवसमवसरणस्थितसर्वऋषिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
पूजा नं.-3 गणधर पूजा —अथ स्थापना-गीता छंद— गणधर बिना तीर्थेश की, वाणी न खिर सकती कभी। निज पास में दीक्षा ग्रहें, गणधर भि बन सकते वही।। तीर्थेश की ध्वनि श्रवण कर, उन बीज पद के अर्थ को। जो ग्रथें द्वादश अंगमय, मैं जजूँ उन गणनाथ को।।१।। ॐ ह्रीं अर्हं श्रीऋषभदेवतीर्थंकरगणधरसमूह! अत्र अवतर अवतर…
पूजा नं.-2 तीर्थंकर गुण पूजा अथ स्थापना-शंभु छंद प्रभु पंचकल्याणक के स्वामी, तीर्थंकर पद के धारी हैं। श्री ऋषभदेव का समवसरण, इसकी शोभा अति न्यारी है।। यद्यपि जिनवर के गुण अनंत, फिर भी छ्यालिस गुण विख्याते। उनका आह्वानन कर पूजें, वे मेरे सब गुण विकसाते।।१।। ॐ ह्रीं अर्हं षट्चत्वािंरशद्गुणमंडितश्रीऋषभदेव तीर्थंकर! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
पूजा नं.-1 समवसरण पूजा अथ स्थापना-अडिल्ल छंद समवसरण जिन खिले कमलसम शोभता। गंधकुटी है मानो उसमें कर्णिका।। ऋषभदेव के समवसरण की अर्चना। मनवांछित फल देती प्रभु की वंदना।।१।। -दोहा- अनंत चतुष्टय के धनी, तीर्थंकर आदीश। आह्वानन कर मैं जजूँ, नमूँ नमूँ नत शीश।।२।। ॐ ह्रीं अर्हं समवसरणविभूतिमंडित श्रीऋषभदेवतीर्थंकर! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्। …
मंगल स्तोत्र -अनुष्टुप् छंद- मंगलमादिनाथोऽर्हन् प्रथमस्तीर्थकृज्जिन:। वृषभ: पुरुदेवाख्यो मंगलं ऋषभेश्वर:।।१।। -शार्दूलविक्रीडित छंद- या वैवल्यविभा निहंति भविनां ध्वांतं मन:स्थं महत्। सा ज्योति: प्रकटीक्रियान्मम मनो-मोहान्धकारं हरेत्।। या आश्रित्य वसंति द्वादशगणा वाणीसुधापायिन:। तास्तीर्थेशसभा अनंतसुखदा: कुर्वन्तु नो मंगलम्।।२।। ये त्रिंशत् चतुरुत्तरा अतिशया ये प्रातिहार्या वसु:। येऽप्यानन्त्यचतुष्टया गुणमया दोषा: किलाष्टादश।। ये दोषै: रहिता गुणैश्च सहिता देवाश्चतुर्विंशति:। ते सर्वस्वगुणा अनंतगुणिता: कुर्वन्तु…
नवनिधि विधान 01. मंगलाचरण 02. श्री शांति-कुंथु-अर तीर्थंकर पूजा 03. श्री शांतिनाथ पूजा 04. श्री कुंथुनाथ जिनपूजा 05. श्री अरनाथ तीर्थंकर पूजा 06. बड़ी जयमाला
बड़ी जयमाला —पंचचामर छंद— जयो जयो जयो जिनेंद्र इंद्रवृंद बोलते। त्रिलोक में महागुरू सु आप नाम तोलते।। सुधन्य धन्य धन्य आप साधुवृंद बोलते। जिनेश आप भक्त ही तो निज किवांड खोलते।।१।। समोसरण में आपके महाविभूतियाँ भरीं। अनेक ऋद्धि सिद्धियाँ सुआप पास में खड़ीं।। अनंत अंतरंग गुण समूह आप में भरें। गणीन्द्र औ सुरेंद्र चक्रि आप…