दशधर्म…. index
दशधर्म….
उत्तम क्षमा धर्म उत्तम—खम मद्दउ अज्जउ सच्चउ, पुणु सउच्च संजमु सुतउ। चाउ वि आिंकचणु भव—भय—वंचणु बंभचेरू धम्मु जि अखउ।। उत्तम—खम तिल्लोयहँ सारी, उत्तम—खम जम्मोदहितारी। उत्तम—खम रयण—त्तय—धारी, उत्तम—खाम दुग्गइ—दुह—हारी।। उत्तम—खम गुण—गण—सहयारी, उत्तम खम मुणििंवद—पियारी। उत्तम—खम बुहयण—चिन्तामणि, उत्तम—खम संपज्जइ थिर—मणि।। उत्तम—खम महणिज्ज सयलजणि उत्तम—खम मिच्छत्त—तमो—मणि। जिंह असमत्थहं दोसु खमिज्जइ जिंह असमत्थहंण उ रूसिज्जइ।। जिंह आकोसण वयण सहिज्जइ,जहिं…
दशधर्म…. सिद्धिप्रासादनि:श्रेणीपंक्तिवत् भव्यदेहिनाम्। दशलक्षणधर्मोऽयं नित्यं चित्तं पुनातु न:।।१।। भव्य जीवों के सिद्धिमहल पर चढ़ने के लिए सीढ़ियों की पंक्ति के समान यह दशलक्षणमय धर्म नित्य ही हम लोगों के चित्त को पवित्र करे। इन दशधर्मों के उपासना के पर्व को दशलक्षण पर्व कहते हैं। चूूँकि इसमें उपवास आदि के द्वारा आत्मा को पवित्र बनाया जाता…
१. जिनमाता की महिमा २. कन्यारत्न ही सर्वोत्कृष्ट रत्न है ३. जटायु पक्षी ४. भाग्य का चमत्कार ५. उपवास के गुण ६. अनेकांत ७. तीर्थंकरों के पूर्व भव के गुरु ८. अभक्ष्य किसे कहते हैं? ९. तप का प्रभाव १०. आई हुई निधि चली गई ११. जिनधर्म की देशना का पात्र कौन? १२. प्रत्युपकार १३….
चौबीस तीर्थंकरों की सोलह जन्मभूमियों की नामावली….
महिलाओं के कर्तव्य……. संसार की दृष्टि में स्त्री और पुरुष दो अंग हैं। जैसे कुंभकार के बिना चाक से बर्तन नहीं बन सकते हैं अथवा कृषक के बिना पृथ्वी से धान्य की फसल नहीं हो सकती है उसी प्रकार स्त्री-पुरुष दोनों के संयोग के बिना सृष्टि की परम्परा नहीं चल सकती है। इतना सब कुछ…
ध्यान……. माधुरी-माताजी! आज ध्यान की चर्चा जहाँ-तहाँ चलती रहती है, वह ध्यान क्या है? और उसके कौन-कौन से भेद हैं? माताजी-एकाग्रचिन्तानिरोध होना अर्थात् किसी एक विषय पर मन का स्थिर हो जाना ध्यान है। यह ध्यान उत्तम संहनन वाले मनुष्य के अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्त तक ही हो सकता है। इस ध्यान के आर्त, रौद्र,…
दृढ़ता का ज्वलन्त उदाहरण…… सेठ प्रियदत्त अपनी भार्या और कन्या सहित श्री महामुनि धर्मकीर्ति आचार्य के समीप बैठे हुए धर्मोपदेश सुन रहे हैं। उपदेश के अनन्तर सेठ जी हाथ जोड़कर गुरु से निवेदन करते हैं- ‘‘श्रीगुरुदेव! इस अष्टान्हिक महापर्व में आठ दिन के लिए मुझे ब्रह्मचर्य व्रत प्रदान कीजिए।’’ मुनिराज भी पिच्छिका उठाकर कुछ मंत्र…
संन्यासी-संन्यासिनी…. कमला-माताजी! सभी सम्प्रदाय के साधु-ब्रह्मचारी ही होते हैं फिर उनका त्याग उत्तम फल क्यों नहीं दे सकता? माताजी-बेटी कमला! किसी-किसी सम्प्रदाय में कुछ साधु अपने साथ पत्नी को रखते हैं। ऐसे उदाहरण आज भी देखने को मिलते हैं और चतुर्थकाल में भी रखते थे जिनके उदाहरण शास्त्र में मौजूद हैं। कमला-शास्त्र में तो मैंने…
नि:शल्योव्रती…. सुगंधबाला-जीजी! शल्य किसे कहते हैं? मालती-‘‘शल्यमिव शल्य’’ जो शल्य-कांटे के समान चुभती रहे-दु:ख देवे, वह शल्य है। महाशास्त्र तत्त्वार्थ सूत्र में ‘‘नि:शल्यो व्रती’’ यह सूत्र कहा है। इसका विशेष स्पष्टीकरण सर्वार्थसिद्धि, तत्त्वार्थराजवार्तिक आदि ग्रंथों में किया गया है। सर्वार्थसिद्धि में कहते हैं-‘‘शृणाति हिनस्तीति शल्यम्। शरीरानुप्रवेशिकांडादि-प्रहरणं शल्यमिव शल्यं यथा तत्प्राणिनोबाधाकारं तथा शारीरमानसबाधा-हेतुत्वात्कर्मोदयविकार: शल्यमित्युपचर्यते। तत्त्रिविधं मायाशल्यं,…