शांतिनाथ विधान (अंग्रेजी में)
शांतिनाथ विधान (अंग्रेजी में) (आर्यिका चंदनामति माताजी द्वारा)
शांतिनाथ विधान (अंग्रेजी में) (आर्यिका चंदनामति माताजी द्वारा)
द्वारा -आर्यिका सुदृष्टिमति माताजी प्र. १ -णमोकार मंत्र का जाप्य क्यों? उत्तर- णमोकार मंत्र हमारी आत्मा की खुराक है, इसमें भावों की पुट जितनी मात्रा में लगती है उतना ही सशक्त हो जाती है और आत्मा पर लिप्त विकारों की परत को निकालकर फेंकती जाती है। इसीलिये तो प्रत्येक जैन, आबाल, वृद्ध सभी भक्ति से, अनुराग…
खान पान की शुद्धि कुछ लोग भक्ष्य-अभक्ष्य का ध्यान रखे बिना ही कहीं भी कुछ भी खा लेते हैं। अधिकांश ब्रेड, बिस्कुट टॉफी, चॉकलेट, डबलरोटी, टोस्ट, पिन्जा, केक आदि एकदम अभक्ष्य होते हैं, क्योंकि किन्हीं में अंडे का अंश पड़ता है, किसी में मछली का तेल तो किसी में कुछ, अमर्यादित बासी भोजन, 24 घंटे…
जैन धर्म के प्रतीक चिह्न ह्रीं – यह 24 तीर्थंकरों का वाचक बीज पद है। यह एक अक्षर वाला बीज मंत्र है। इसमें 24 तीर्थंकरों का अस्तित्व माना जाता है। इस मंत्र के ध्यान से मानसिक, शारीरकि शक्ति व ऊर्जा प्राप्त होने के साथ भावों में विशुद्धि होती है। ॐ- यह परमेष्ठी का वाचक मंत्र…
जैन तीर्थ नदी के घाट को तीर्थ कहते हैं, मतलब जहाँ से उतरकर उस पार जाया जाए। ऐसे ही उन स्थानों को भी तीर्थ कहते हैं जहाँ के दर्शन वंदन से आत्मा संसार से तर जाए। जो तीर्थ (धर्म) चलाते हैं उन्हें तीर्थंकर कहते हैं और उनके स्पर्श से पवित्र हुए क्षेत्रों को तीर्थ कहते…
णमोकार मंत्र, जिनदर्शन व अभिषेक विधि स्नान से शरीर व मुखशुद्धि करके शुद्ध-धुले वस्त्र पहनकर मंदिर जाना चाहिए। ऊनी कपड़े, चमड़े के बेल्ट या जूते पहनकर तथा चमड़े का पर्स लेकर जिनालय नहीं जाना चाहिए। मंदिर में प्रवेश करते समय हाथ व पैरों का प्रक्षालन करना चाहिए। फिर यह बोलते हुए मंदिर में प्रवेशकर दर्शन…
जैन धर्म की प्राचीनता जैन धर्म दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म है। जब आर्य भारत में नहीं आए थे तब भी द्रविड़ या व्रात्य के रूप में यहाँ जैनी रहते थे। मोहनजोदड़ों और सिंधु घाटी की सभ्यता की खुदाई में अनेकों प्रमाण जैन धर्म के मिले हैं। अनेक पुरातत्वविदों, शिक्षाशास्त्रियों और नेताओं ने भी इसकी…
प्रमुख सिद्धांत जैन धर्म के प्रमुख सिद्धांतों को हम संक्षेपतः इस प्रकार समझ सकते हैं- अहिंसा- जानबूझ कर किसी भी प्राणी को दुख नहीं पहुँचाना। पशु- पक्षियों, पेड़-पौधों, अग्नि-वायु की भी दया पालना। अहिंसा के साथ सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और परिग्रह परिमाण व्रत का पालन करना। ग्लोबल वार्मिंग, मृदावरण, जलावरण व वातावरण की सुरक्षा हेतु…
जैन मुनि जैन शासन में आत्मशुद्धि हेतु तपस्या करने वलो साधुओं को मुनि या श्रमण कहते हैं। जो विषय-वासनाओं, विकारों, आरंभ-परिग्रह से रहित हो तथा ज्ञान-ध्यान तपस्या में तल्लीन हों वे सच्चे साधु (तपस्वी) कहलाते हैं। दिगंबर जैन मुनियों की साधना अत्यंत कठिन होती है, वे अनेक व्रत नियम पालते हैं, जिनमें 28 मूलगुणों की…