समवसरण विंशतिका प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी दोहा सरस्वती लक्ष्मी जहाँ, नितप्रति करें प्रणाम। पुण्यमयी उस धाम का, समवसरण है नाम।। समवसरण का स्वरूप छंद-विष्णुपद (कहाँ गये चक्री-बारहभावना) जहाँ पहुँचते ही दर्शक का पाप शमन होता। जहाँ पहुँचते ही मानी का मान गलन होता।। सबको शरण प्रदाता वह ही समवसरण…
शनिग्रहारिष्टनिवारक श्री मुनिसुव्रतनाथ चालीसा दोहा श्री मुनिसुव्रत पद कमल,शत शत करूं प्रणाम | जिनशासन के सूर्य वे,करें स्व पर कल्याण ||१|| त्रैलोक्याधिपती बने, कर्मशत्रु को जीत | चालीसा उनका कहूँ , पाऊं आत्मनवनीत ||२|| चौपाई जय जय श्री मुनिसुव्रत स्वामी, तीन लोक में हो तुम नामी ||१|| नृप सुमित्र के गृह तुम…
गुरुग्रहारिष्टनिवारक श्री महावीर चालीसा दोहा वर्धमान सन्मति प्रभो , महावीर अतिवीर | पांच नामयुत वीरप्रभु , को नित नाऊँ शीश || चालीसा महावीर का , पढ़ो भव्य मन लाय | रोग शोक संकट टले , सुख सम्पति मिल जाय || चौपाई जय श्री सन्मति गुणरत्नाकर , त्रिभुवन के तुम ही हो भास्कर…
शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्री पुष्पदंतनाथ चालीसा दोहा पुष्पदंत भगवान हैं , नवमें श्री जिनराज | भक्तिभाव से में नमूँ, आत्मिक सम्पति काज ||१|| चालीसा उनका कहूँ , मेटें सर्व अरिष्ट | रोग,शोक,सब दूर हों ,तुम ही प्रभु मम इष्ट ||२|| चौपाई जय जय पुष्पदंत सुखदाता ,भविजन को सदबुद्धि प्रदाता ||१|| त्रैलोक्याधिपती कहलाए , सुर नर…
बुधग्रहारिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ चालीसा दोहा वन्दूं श्री जिन मल्लिप्रभु , वीतराग सुखकार | काममल्ल को जीतकर , पद पाया अविकार ||१|| उन्निसवें तीर्थेश के, पद वंदन शत बार | चालीसा पढकर लहूँ , स्वात्मधाम सुखकार ||२|| चौपाई मल्लिप्रभु यम मल्ल विजेता , मोक्षमार्ग के बन गए नेता ||१|| आत्मा में जब रमण कर लिया…
राहुग्रहारिष्टनिवारक श्री नेमिनाथ चालीसा दोहा नेमिनाथ भगवान को, वंदन बारम्बार | उनके वचनामृत सभी, भविजन को सुखकार ||१|| स्वात्मनिधी को प्राप्त कर,किया आत्मकल्याण | चालीसा के पाठ से,जिनवर का गुणगान ||२|| चौपाई जय जय जय श्री नेमि जिनेश्वर, कहलाए प्रभु तुम परमेश्वर ||१|| गर्भ में माता के जब आए, सोलह स्वप्न उन्हें दिखलाए ||२||…
केतुग्रहारिष्टनिवारक श्री पार्श्वनाथ चालीसा दोहा तेइसवें तीर्थेश हैं , पार्श्वनाथ भगवान | उनकी भक्ती से मिले,क्रमशः पद निर्वाण ||१|| वीतराग सर्वज्ञ को, मन मंदिर में ध्याय | चालीसा उनका कहूँ , मनवांछित मिल जाय ||२|| चौपाई जय जय जय श्री पार्श्व जिनेश्वर, तुम कहलाए सर्व हितंकर ||१|| क्षमाशील हो विघ्नविनाशक, प्रभु तुम मोक्षमार्ग परकाशक…
मिथ्यादृष्टि- जिनेन्द्र भगवान के वचनों पर श्रद्धान नहीं करने वाला मिथ्यादृष्टि कहलाता है “