भगवान पुष्पदन्तनाथ चालीसा
श्री पुष्पदन्तनाथ चालीसा श्री पुष्पदन्तनाथ चालीसा –दोहा- ऋषभदेव को आदि ले, चन्द्रप्रभू पर्यंत। …
श्री पुष्पदन्तनाथ चालीसा श्री पुष्पदन्तनाथ चालीसा –दोहा- ऋषभदेव को आदि ले, चन्द्रप्रभू पर्यंत। …
अकृत्रिम जिनमंदिर भूमिका श्र्यादिदेवीकमलेषु, परिवारकंजेष्वपि। जिनालया जिनार्चाश्च, तांस्ता: स्वात्मश्रियै नुम:।।१।। श्री आदि-ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी इनके कमलों में तथा इनके परिवार कमलों में भी जिनमंदिर हैं और जिनप्रतिमाएँ हैं। उन सभी जिनमंदिर व जिनप्रतिमाओं को हम अपनी आत्मा की श्री-लक्ष्मी-गुणसंपत्ति को प्राप्त करने के लिए नमस्कार करते हैं।।१।। -शंभु छंद- …
सिद्ध सिद्ध जिन्होंने आठों कर्म का नाश कर दिया है और आठ गुणों से सहित हैं, लोक के अग्रभाग पर विराजमान हैं, वे सिद्ध परमेष्ठी कहलाते हैं। फ्फ
धरणेन्द्र देव की मंगल आरती तर्ज—मैं तो…………. मैं तो आरती उतारूं रे, धरणेन्द्र देवा की जय जय धरणेन्द्र देव, जय जय जय-२।।टेक.।। पार्श्वनाथ के शासन देव, महिमा जग न्यारी। सम्यग्दर्शन से हो परिपूर्ण, सब संकट हारी।। सुख के प्रदाता हो, मनवांछित दाता हो, इच्छा करो पूरी, भक्त की इच्छा करो पूरी।। मैं तो आरती उतारूं…
धर्मचक्र विधान की आरती तर्ज-जिया बेकरार है……….. जिनवर का दरबार है नमन करें शतबार है। धर्मचक्र की देखो कैसी महिमा अपरंपार है।।टेक.।। मंगल आरति लेकर प्रभु जी आया तेरे द्वार जी। धर्मचक्र का पाठ करे जो होगा बेड़ा पार जी।। यही जगत में सार है, झूठा सब संसार है।।धर्म.।।१।। चौबीसों जिन पंच परम…
भगवान श्री धर्मनाथ की आरती तर्ज—मन डोले, मेरा तन डोले……….. जय धर्मप्रभू , करूणासिन्धू की मंगल दीप प्रजाल के मैं आज उतारूं आरतिया ।।टेक.।। पन्द्रहवें तीर्थंकर जिनवर, धर्मनाथ सुखकारी। तिथि वैशाख सुदी तेरस, गर्भागम उत्सव भारी।। प्रभू गर्भागम उत्सव भारी……….. सुप्रभावती, माता हरषीं, पितु धन्य भानु महाराज थे, मैं आज उतारूँ आरतिया।।जय धर्म…..।।१।।…
जृंभिका तीर्थ की आरती तर्ज-झुमका गिरा रे………. आरति करो रे, जृंभिका तीर्थ की सब मिल करके, आरति करो रे। आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, जृंभिका तीर्थ की सब मिल करके, आरति करो रे।।।टेक.।। कुण्डलपुर के वीर प्रभू ने, केवलज्ञान जहाँ पाया, प्रथम रचा था समवसरण, तब इन्द्र बहुत ही…
दशधर्म की आरती तर्ज-बार-बार तुझे क्या समझाऊँ…………. दशधर्मों की आरति करके, होगा बेड़ा पार। धर्म के बिना इस जग में, कौन करेगा उद्धार।।टेक.।। आत्मा को दुख से निकालकर, जो सुख में पहुँचाता। हर प्राणी के लिए वही तो, सच्चा धर्म कहाता। उसी धर्म को धारण करके, होगा बेड़ा पार। धर्म के बिना इस जग…
तेरहद्वीप रचना की आरती आरति करो रे, तेरहद्वीपों के जिनबिम्बों की आरति करो रे।। टेक.।। तीन लोक में मध्यलोक के अंदर द्वीप असंख्य कहे। उनमें से तेरहद्वीपों में अकृत्रिम जिनबिंब रहें।। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, चउ शत अट्ठावन जिनमंदिर की आरति करो रे।।१।। इनमें ढाई द्वीपों तक ही मनुज क्षेत्र…
तीर्थंकर पंचकल्याणक भूमि की आरती तर्ज—पंखिड़ा………….. आरती करूँ मैं सभी तीर्थधाम की। जिनवरों के पंचकल्याण धाम की।।आरती……..।।टेक.।। प्रभु की जन्मभूमि वंदना से जन्म सफल हो। प्रभु की त्यागभूमि अर्चना से धन्य जनम हो।। झूम झूम भक्ति करूँ, नृत्य करूँ मैं। आरती प्रभू की करके पुण्य भरूँ मैं।।आरती……।।१।। घाति कर्मनाश प्रभु को दिव्यज्ञान हो जहाँ।…