श्री संभवनाथ चालीसा दोहा श्री संभव जिनराज का, करने से गुणगान। कोई असंभव कार्य भी, संभव हो तत्काल।।१।। चालीसा का पाठ मैं, लिखना चाहूँ आज। वागीश्वरि देवीसरस्वती देवीमुझे, दे दो आर्शीवाद।।२।। चौपाई संभवजिन की भक्ती कर लो, भववारिधि से तिरना हो तो।।१।। नगरी श्रावस्ती अति प्यारी, मात सुषेणा वहाँ की रानी।।२।। पुण्यशालि…
श्री अभिनन्दननाथ चालीसा दोहा ऋषभ-अजित-संभव प्रभू, को वंदन त्रय बार। उसके बाद चतुर्थ हैं, श्री अभिनन्दननाथ।।१।। उनका जीवनवृत्त है, अनुपम और विशाल। लेकिन इतने शब्द तो, नहीं हैं मेरे पास।।२।। यदी शारदे मात की, होवे कृपा प्रसाद। तब मैं पूरा कर सकूं, यह चालीसा पाठ।।३।। चौपाई श्री अभिनन्दनाथ तीर्थंकर, तीनों लोकों में…
श्री सुमतिनाथ चालीसा दोहा पंचपरमगुरु को नमूँ, नमूँ शारदा मात। सुमति प्रदान करें मुझे, सुमतिनाथ भगवान।।१।। पंचम तीर्थंकर नमूँ, पंचमगति मिल जाए। रोग-शोक बाधा टलें, चहुँदिश सुख हो जाए।।२।। चौपाई जय हो तीर्थ अयोध्या की जय, शाश्वत जन्मभूमि की जय जय।।१।। इस हुण्डावसर्पिणी युग में, नहीं यहाँ सब जिनवर जन्में।।२।। प्रथम तीर्थंकर…
चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर चालीसा रचयित्री-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती दोहा सन्मति शासन को नमूँ, नमूँ शारदा सार। कुन्दकुन्द आचार्य की, महिमा मन में धार।।१।। इसी शुद्ध आम्नाय में, हुए कई आचार्य। सदी बीसवीं के प्रथम, शान्तिसागराचार्य।।२।। ये चारित चक्री मुनी, गुरूओं के गुरू मान्य। चालीसा इनका कहूँ, पढ़ो सुनो कर ध्यान।।३।। चौपाई जय श्री गुरूवर शान्तीसागर,…
श्री अजितनाथ चालीसा दोहा अष्टकर्म को नाशकर, बने सिद्ध भगवान। उनके चरणों में करूँ, शत-शत बार प्रणाम।।१।। पुन: सरस्वती मात को, ज्ञानप्राप्ति के हेतु। नमन करूँ सिर नाय के, श्रद्धा भक्ति समेत।।२।। अजितनाथ भगवान ने, जीते विषय-कषाय। उनकी गुणगाथा कहूँ, पद अजेय मिल जाय।।३।। चौपाई जीत लिया इन्द्रिय विषयों को, नमन करूँ उन अजितप्रभू को।।१।।…