चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज की पूजन रचयित्री-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती स्थापना पूजन करो रे, श्रीशान्तिसिन्धु आचार्य प्रवर की, पूजन करो रे-२।भारतवसुन्धरा ने जब, मुनियों के दर्श नहिं पाये।सदी बीसवीं में तब श्री, चारित्रचक्रवर्ती आए।।दक्षिण भारत भोजग्राम ने, एक लाल को जन्म दिया।उसने ही सबसे पहले, मुनिपरम्परा जीवन्त किया।।पूजन करो रे, श्रीशान्तिसिन्धु आचार्य प्रवर…
चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर चालीसा रचयित्री-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती दोहा सन्मति शासन को नमूँ, नमूँ शारदा सार। कुन्दकुन्द आचार्य की, महिमा मन में धार।।१।। इसी शुद्ध आम्नाय में, हुए कई आचार्य। सदी बीसवीं के प्रथम, शान्तिसागराचार्य।।२।। ये चारित चक्री मुनी, गुरूओं के गुरू मान्य। चालीसा इनका कहूँ, पढ़ो सुनो कर ध्यान।।३।। चौपाई जय श्री गुरूवर शान्तीसागर,…
शान्तिसागर परिचय चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर महाराज का जीवन चरित्र तथा संस्मरण सन 1955 में कुन्थलगिरी सिद्ध क्षेत्र से आचार्य शांतिसागर जी ने समाधी मरण को प्राप्त किया था, 36 दिन की सल्लेखना चली, 36 दिन की सल्लेखना में आचार्य श्री की साधना तथा बल बहुत विशिष्ट था, और उन्होंने लगभग 20 उपवास हो…
आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज द्वारा प्रदत्त कतिपय शिक्षाबिन्दु : टिप्स # हमने प्रतिज्ञा कर ली थी कि जिस घर में शास्त्रानुसार आहार प्राप्त होगा, वहीं करेंगे। # भगवान की आज्ञा के प्रतिकूल जरा भी कार्य नहीं करेंगे, भले ही हमारे प्राण चले जावें। # जिनवाणी सर्वज्ञदेव की वाणी है। वह पूर्ण सत्य है। उसके…
‘‘शांति के सागर-आचार्य शांतिसागर’’ (नाटक) भोजग्राम का दृश्य दक्षिण भारत के भोजग्राम में भीमगौंडा पाटील के घर का दृश्य । श्री भीमगौंडा पाटील बैठे हैं तभी उनकी धर्मपरायण पत्नी सौभाग्यवती सत्यवती भोजन का थाल लेकर आती हैं, वे गर्भवती हैं, पास में ही छोटा बालक देवगौंडा खेल रहा है । अचानक सत्यवती जी के मुरझाए…
चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज का जीवन परिचय प्रस्तुति-गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी जन्मकाल और बाल्यावस्था गौरवशाली प्रकाशपुंज आचार्य कुन्दकुन्द,स्वामी समंतभद्र, विद्यानंदी, जिनसेन इत्यादि आचार्यों की जन्मभूमि तथा उपदेश से पवित्र कर्नाटक प्रदेश में आचार्यश्री १०८ शांतिसागर महाराज का जन्म हुआ। बेलगाँव जिले में भोज ग्राम के भीमगौंडा पाटील की धर्मपत्नी सत्यवती थीं। सन् १८७२…
आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज की कतिपय अमूल्य शिक्षाएँ एवं विचार हाथी का स्नान मुनि श्री नेमिसागर जी जब गृहस्थ थे और व्यापार करते थे, तभी से आचार्यश्री के संपर्क में आ गये थे। गृहस्थी चलाते हुए ही उन्होंने कई कठोर नियम पाल रखे थे और विरक्ति मार्ग पर चलने के लिए अपने को तैयार…