
श्री अभिनंदन जिन तीर्थंकर, त्रिभुवन आनंदकारी।

पद्म सरोवर का जल लेकर, कंचन झारी भरिये। 
मलयागिरि चंदन काश्मीरी, केशर संग घिसायो।
मोतीसम तंदुल उज्ज्वल ले, धोकर थाल भराऊँ। 
चंपा हरसिंगार चमेली, माला गूँथ बनाई।
फेनी गुझिया पूरण पोली, बरफी और समोसे।
रत्नदीप की ज्योती जगमग, करती तिमिर विनाशे। 
धूप दशांगी धूपघटों में, खेवत उठे सुगंधी। 
सेव अनार आम सीताफल, ताजे सरस फलों से। 
जल फल अर्घ सजाकर उसमें, चाँदी पुष्प मिलाऊँ। 

अभिनंदन जिनपदकमल, निजानंद दातार।
जाप्य-ॐ ह्रीं श्रीअभिनंदनजिनेन्द्राय नम:।
गणपति नरपति सुरपती, खगपति रुचि मन धार।