
अरिहंत प्रभु ने घातिया को, घात निज सुख पा लिया। 
साधु के चित्त सम स्वच्छ जल ले लिया।




केतकी कुंद मचकुंद बेला लिये। 
मुद्ग मोदक इमरती भरे थाल में। 




सेव अँगूर दाड़िम अनन्नास ले। 
अर्घ्य लेकर जजूँ नाथ को आज मैं। 



श्री अरिहंत जिनेन्द्र का, धरूँ हृदय में ध्यान। 