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आचार्य श्री धर्मसागर विधान-एक समीक्षा

March 26, 2017चन्दनामती माताजीjambudweep

आचार्य श्री धर्मसागर विधान-एक समीक्षा


—डॉ. देवकुमार जैन, रायपुर (छत्तीसगढ़)

गणिनी प्रमुख, आर्यिका शिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी की शिष्या प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी द्वारा रचित ‘‘आचार्य श्री धर्मसागर विधान’’ उनकी अगाध गुरुभक्ति का ही वास्तविक प्रतिफलन है, जिसमें उन्होंने चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज के तृतीय पट्टाचार्य आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज के जीवन से समाज को परिचित कराते हुए उनका गुणानुवाद प्रस्तुत किया है। पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के ६१वें त्याग दिवस के पुण्य अवसर शरद पूर्णिमा महोत्सव-२०१२ पर घोषित ‘‘चारित्र वर्धनोत्सव वर्ष २०१२-१३’’ के अन्तर्गत वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला का पुष्प नं. ३७९ के रूप में दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान, जम्बूद्वीप हस्तिनापुर (मेरठ) उ. प्र. के द्वारा प्रकाशित इस नूतन कृति की रचना पूज्य प्रज्ञाश्रमणी जी ने ‘‘आचार्य श्री धर्मसागर जन्म शताब्दी वर्ष’’ के अन्तर्गत की है। जिसमें सर्वप्रथम परमपूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा संस्कृत भाषा में रचित आचार्य श्री धर्मसागर वंदना प्रस्तुत की गई है जिसका प्रारम्भ सुमधुर ‘वसंततिलका छंद’ और समापन ‘अनुष्टुप छंद’ से किया गया है।

सम्यक्त्वशीलगुणमण्डितपुण्यगात्रः। से प्रारंभ एवं— तं धर्मसागरमुनीन्द्रमहं प्रवन्दे।। के साथ ही अनुष्टुप छंद में अभिव्यक्त गुरु पूजा की प्रतिज्ञा के लिए अपने पवित्र अंतःकरण से उद्भूत यह अक्षरयात्रा स्वयं को आदर्श रूप में प्रकटित होने की अदम्य आकांक्षा के साथ ही है, अपनी शिष्या प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी के लिए शुभ संदेश, जिसमें उन्होंने इस आदर्श-रूप में स्वयं को ढालने का आशीर्वाद प्रदान किया है।

तदनन्तर पूजन

विधान का प्रारम्भ करते हुए इसकी रचयित्री प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती जी ने आचार्य परमेष्ठी के ३६ मूलगुणों के ३६ अर्घ्य, एक पूर्णाघ्य एवं शेर छंद में सुन्दर जयमाला प्रस्तुत की है। जिससे भक्तजन गुरुभक्ति के द्वारा संसार सागर से तिरने का सुन्दर अवलम्बन प्राप्त कर सके। विधान के अंत में दोहा छंद में लिखित प्रशस्ति में रचनाकत्र्री ने अपनी शुभेच्छा व्यक्त की है कि सदा ही गुरुचरण की छांव मिलती रहे। विधान के समापन पर संघस्थ ब्र. कु. इन्दु जैन ने सुन्दर और सरल शब्दों मे रचित आरती में अपनी भावाञ्जलि व्यक्त की है, जिसमें उन्होंने परमपूज्य गुरुदेव आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज के व्यक्तित्व से प्रभावित सकल भक्तजनों से पूज्य गुरुदेव की आरती सतत करते रहने की आकांक्षा व्यक्त की है।

अपनी अप्रतिम भक्ति से भजनों की रचना करने में अत्यन्त प्रवीण आशुकवियित्री प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती जी ने चार भजनों से संयुक्त इस विधान के अन्त में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ‘‘माण्डना’ प्रस्तुत किया है जिससे कि सभी भक्तजनों को विधान करने में सुलभता प्राप्त हो। २४ पृष्ठीय इस पूजन विधान के मुखपृष्ठ पर परमपूज्य आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज का पावन चित्र एवं अंतिम पृष्ठ पर भगवान शान्तिनाथ-कुंथुनाथ-अरनाथ की जन्मभूमि हस्तिनापुर में निर्मित विश्व की अद्वितीय रचना जम्बूद्वीप एवं जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर में निर्मित तेरहद्वीप रचना की आकर्षक प्रतिकृति चित्रित की गई है। मुख पृष्ठ के पृष्ठ भाग पर २०वीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती श्री वीरसागर जी महाराज एवं उनके प्रथम पट्टाधीश पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के आर्यिका दीक्षागुरु आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के साथ जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी परमपूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी एवं उनकी शिष्या श्री चंदनामती माताजी के चित्र प्रकाशित हैं।

साथ ही अंतिम पृष्ठ के पूर्व पृष्ठ पर आदिब्रह्मा भगवान ऋषभदेव दीक्षास्थली प्रयाग-इलाहाबाद में निर्मित भव्य केलाश पर्वत के साथ ही भगवान पुष्पदंतनाथ जन्मभूमि काकन्दी (देवरिया) उ. प्र. में निर्मित भव्य मंदिर का आकर्षक चित्र मन को सहसा आर्किषत कर लेता है। स्वस्तिश्री पीठाधीश रवीन्द्रर्कीित स्वामी जी द्वारा सम्पादित और संघस्थ ब्र. कु. इन्दु जैन द्वारा प्रस्तावित इस विधान में प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती द्वारा आर्यिका शिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी का संक्षिप्त परिचय संघस्थ कु. बीना जैन द्वारा पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी का परिचय एवं प्रबंध संपादक श्री जीवन प्रकाश जैन द्वारा दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान का परिचय प्रदान कर इस रचना को पूर्णता प्रदान की गई है। इस सुंदर एवं महत्त्वपूर्ण प्रकाशन के लिए लेखक, प्रकाशक एवं सम्पादक हार्दिक बधाई के पात्र हैं। यह प्रकाशन भक्तजनों में असीम भक्ति का संचार करेगा, ऐसा विश्वास है।

 

Tags: sahity samiksha
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