-आर्यिका चंदनामती
तर्ज-माई रे माई………..
णमोकार महामंत्रराज की आरति करने आये।
पाँचों परमेष्ठी का वन्दन, पुण्यधाम दिलवाये।।
जय हो मंत्रराज की जय, जय णमोकार धाम की जय।
पंचपदी णमोकार मंत्र में, पाँचों परमेष्ठी हैं।
अर्हत् सिद्धाचार्य उपाध्याय साधु उन्हें कहते हैं।।
परमोत्तम पद में स्थित ये, परमेष्ठी कहलाये।
पाँचों परमेष्ठी का वन्दन, पुण्यधाम दिलवाये।।
जय हो मंत्रराज की जय, जय णमोकार धाम की जय।।१।।
णमोकार महामंत्र में पैंतिस अक्षर माने जाते।
अट्ठावन मात्रा स्वर-व्यंजन चौंसठ वर्ण हैं आते।।
द्वादशांग का बीजाक्षर यह, श्रुत का सार बताये।
पाँचों परमेष्ठी का वन्दन, पुण्यधाम दिलवाये।।
जय हो मंत्रराज की जय, जय णमोकार धाम की जय।।२।।
चौरासी लख मंत्रों का यह, मूल स्रोत कहलाता।
इसीलिए ‘चन्दनामती’, मातृका मंत्र कहलाता।।
घृत दीपक से आरति करके, आरत क्लेश नशाएँ।
पाँचों परमेष्ठी का वन्दन, पुण्यधाम दिलवाये।।
जय हो मंत्रराज की जय, जय णमोकार धाम की जय।।३।।
तीरथ है णमोकार धाम, इस धाम की महिमा न्यारी।
गणिनी ज्ञानमती अरु मोतीसागर की यह क्यारी।।
इसके नव प्रकाश से हम सब, आतम ज्योति जलायें।
पाँचों परमेष्ठी का वन्दन, पुण्यधाम दिलवाये।।
जय हो मंत्रराज की जय, जय णमोकार धाम की जय।।४।।