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ईश्वर

June 7, 2022शब्दकोषjambudweep

ईश्वर


केवल ज्ञानादि गुण रूप ऐश्वर्य से युक्त होने के कारण जिनके पद की अभिलाषा करते हुए देवेन्द्र आदि भी जिसकी आज्ञा का पालन करते हैं अत: वह परमात्मा ईश्वर होता है ।

अपनी स्वतन्त्र कर्ता कारण शक्ति के कारण आत्मा ही ईश्वर है । जैन धर्म चूंकि कर्म सिद्धान्त को मानता है अत: उसके अनुसार ईश्वर किसी वस्तु का कर्त्ता नहीं है, हम सभी को सुख दु:ख देने वाला अपना-२ भाग्य है । जो जीव अच्छे या बुरे भाव करता है या बुरे वचन बोलता है अथवा बुरे कार्य करता है उसी के अनुसार पुण्य और पापरूपी कर्मो का बंध हो जाता है जो कि समय आने पर जीव को फल देता है । उदाहरणार्थ अगर हम ईश्वर को सृष्टि का कर्ता मानें तो वह किसी को दु:ख क्यों देता है, उसने पापी मनुष्य क्यों बनाये ? पाप की रचना क्यों की ? इसीलिए भगवान किसी के सुख दुख का या जगत का कर्त्ता नहीं है प्रत्येक जीव स्वयं पुण्य पाप करके उसका फल सुख व दुख भोगता है वही जीव अपने आत्मस्वरूप को प्राप्त कर लेता है तब ईश्वर या परमात्मा बन जाता है ।

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