जैन आगम के अनुसार चारो प्रकार के आहार का त्याग करना उपवास है । प्रत्येक मास की दोनों अष्टमी और दोनों को अपनी इच्छा से आगम के अनुसार चारो प्रकार के आहार का त्याग करना तथा अष्टमी चतुर्दशी के पहले व बाद में एकाशन करना प्रोषधोपवास है । यह तप करना सिखाता है । इस व्रत के धारी शरीर से निर्मम बन जाते है ।
उपवास के दिन व्याज्य कार्य – रत्नकरण्ड श्रावकाचार में समन्तभद्र स्वामी ने लिखा है –
जिस दिन उपवास हो उस दिन पाँचो पापों का त्याग करके आरंभ, गंध, माला, अलंकार, स्नान, अंजन, मंजन, नस्य आदि क्रियाओं का त्याग कर देना चाहिए । उस दिन शरीर से ममत्व दूर करने हेतू वैराग्य भाव को धारण करना चाहिए । उपवास के दिन का कर्तव्य – धर्मामृतं सतृष्ण: श्रवणाभ्यां पिबतु पाययेद्वान्यान् । ज्ञान ध्यान परो वा, भवतूपवसन्नतन्द्रालु: । अर्थात् उपवास दिवस आलस्य रहित होकर शास्त्रों का पङ्गन करे । अति उत्वंâङ्गा से धर्मरूपी अमृत को पीवे अर्थात् कानों से श्रवण करे और अन्यों को भी धर्म श्रवण करावें । ज्ञान और ध्यान में तत्पर होते हुए उपवास को उपवास को सफल कर लेवें ।