

हे आदिब्रह्मा! युगपुरुष! पुरुदेव! युगस्रष्टा तुम्हीं। 
जिनवच सम शीतल नीर, कंचन भृंग भरूँ। 
जिनतनु सम सुरभित गंध, सुवरण पात्र भरूँ।
जिन गुणसम उज्ज्वल धौत, अक्षत थाल भरे। 
जिनयशसम सुरभित श्वेत, कुंद गुलाब लिये। 
जिनवचनामृत सम शुद्ध, व्यंजन थाल भरे। 
वरभेद ज्ञान सम ज्योति,जगमग दीप लिये। 
दशगंध सुगंधित धूप, खेवत कर्म जरे। 
जिन ध्वनिसम मधुर रसाल, आम अनार भले।
ले अष्ट द्रव्य का थाल, अघ्र्य सम चढ़ाऊँ मैं। 

ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवजिनेन्द्राय नम:।

जयमाला