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एम.ए.(पूर्वार्ध) इन जैनोलॉजी (चतुर्थ पत्र)

April 20, 2023Books FinalHarsh Jain

एम.ए.(पूर्वार्ध) इन जैनोलॉजी (चतुर्थ पत्र)



“जैनधर्म” सम्प्रदाय नहीं, सार्वभौम धर्म है

  • 01.1 सम्प्रदाय निरपेक्षता का पाठ पढ़ाता है जैनधर्म
  • 01.2 जैनदर्शन आध्यात्मिकता की प्रयोगशाला है
  • 01.3 आत्म स्वातंत्र्य का प्रतिपादक जैनधर्म

जैनदर्शन के कतिपय प्रमुख विषय

  • 02.1 जैनदर्शन में संसार स्वरूप
  • 02.2 जैनदर्शन में छह द्रव्य एवं पंचास्तिकाय
  • 02.3 जैनदर्शन में सात तत्त्व एवं नव पदार्थ
  • 02.4 जैनदर्शन में गुणस्थान एवं लेश्या

आचार्य श्री कुन्दकुन्द की कृतियों में श्रावक एवं श्रमणधर्म

  • 03.1 श्री कुन्दकुन्दाचार्य का जिनभक्ति अनुराग
  • 03.2 श्री कुन्दकुन्ददेव द्वारा प्रतिपादित श्रावक धर्म
  • 03.3 मुनियों की सरागचर्या: कुन्दकुन्द की दृष्टि में
  • 03.4 वीतराग चारित्र एवं उसका फल

न्याय विद्या की न्याययुक्तता

  • 04.1 जैन न्याय ग्रंथों के मंगलाचरण
  • 04.2 न्याय शास्त्र के अध्ययन की आवश्यकता
  • 04.3 आचार्य अकलंक देव, समन्तभद्र एवं विद्यानंदि की जैन न्याय को देन
  • 04.4 जैन न्याय की उपयोगिता
  • 04.5 सर्वोच्च न्याय ग्रंथ : अष्टसहस्री

विभिन्न दृष्टियों की अपेक्षा न्याय व्यवस्था

  • 5.1 जैनधर्म और राजनीति
  • 5.2 जैन न्याय में वाद की मौखिक तथा लिखित परम्परा
  • 5.3 (हरिवंशपुराण) महाभारतकालीन राजनीति व्यवस्था
  • 5.4 जैनधर्म की प्राचीनता एवं स्वतंत्रता के विषय में विभिन्न न्यायालयों के निर्णय
  • 5.5 संविधान निर्माण में जैनों का योगदान

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