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कर्म सिद्धांत

February 2, 2014स्वाध्याय करेंjambudweep

कर्म सिद्धान्त


अध्यापक- यह सारा विश्व अनादि  अनन्त है अर्थात् न इसका आदि है और न कभी अन्त ही होगा। इसे किसी ईश्वर ने नहीं बनाया है।

बालक- गुरु जी! यदि इस विश्व को ईश्वर ने नहीं बनाया है, तो हमें सुख और दु:ख कौन देता है ?

अध्यापक- बालकों! हम सभी को सुख-दु:ख देने वाला अपना-अपना भाग्य है, उसे ही लोग विधाता अथवा ब्रह्मा कहते हैं।

बालक- भाग्य क्या चीज है ?

अध्यापक- देखो कोई भी जीव जो अच्छे या बुरे भाव करता है या बुरे वचन बोलता है अथवा बुरे कार्य करता है उसी के अनुसार पुण्य और पापरूपी कर्मों का बंध हो जाता है वह कर्म समय आने पर जीव को फल देता है। उसे ही भाग्य कहते हैं।

बालक- यदि हम ईश्वर को जगत का कर्ता माने तो क्या हाँनि हैं ?

अध्यापक- यदि ईश्वर परमपिता दयालु भगवान है तो वह किसी को भी दु:ख क्यों देता है ? यदि कहो कि उस जीव ने पाप किया था तो ईश्वर ने पाप की रचना क्यों की ? और पापी मनुष्य क्यों बनाये ? इसीलिए भगवान किसी के सुख-दु:ख का या जगत का कर्ता नहीं है प्रत्येक जीव स्वयं पुण्य-पाप करके उसका फल, सुख और दु:ख भोगता रहता है। वही जीव जब अपने आत्म स्वरूप की प्राप्ति कर लेता है तब परमात्मा बन जाता है।

Tags: Bal Vikas Part-2
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