Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
Search
विशेष आलेख
पूजायें
जैन तीर्थ
अयोध्या
कषाय :!
November 28, 2015
शब्दकोष
jambudweep
[[श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] ==
कषाय :
==
ज्ञानेन च ध्यानेन च, तपोबलेन च बलान्निरुध्यन्ते। इन्द्रियविषयकषाया, धृतास्तुरगा इव रज्जुभि:।।
—समणसुत्त : १३१
ज्ञान, ध्यान और तपोबल से इन्द्रिय—विषयों और कषायों को बलपूर्वक रोकना चाहिए, जैसे कि लगाम के द्वारा घोड़ों को बलपूर्वकर रोका जाता है।
ऋणस्तोदकम् व्रणस्तोकम्, अग्निस्तोवंâ कषास्तोवंâ च। न हि भवद्भिर्विश्वसितव्यं, स्तोकमपि खलु तद् बहु भवति।
—समणसुत्त : १३४
ऋण को थोड़ा, घाव को छोटा, आग को तनिक और कषाय को अल्प मान, विश्वस्त होकर नहीं बैठ जाना चाहिए क्योंकि ये थोड़े भी बढ़कर बहुत हो जाते हैं।
Tags:
Suktiya
Previous post
क्षणभंगुरता!
Next post
कवि!
Related Articles
आत्मज्ञान :!
November 27, 2015
jambudweep
मध्यस्थ :!
November 29, 2015
jambudweep
उपदेशक :!
November 27, 2015
jambudweep
error:
Content is protected !!