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कुरूवंश (Kuruvansh)

November 30, 2022शब्दकोषjambudweep

कुरूवंश (Kuruvansh)


आज से करोड़ो वर्ष पूर्व युग की आदि में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने कर्मभूमि के प्रारम्भ पर अपने अवधिज्ञान द्वारा विदेह क्षेत्र की चतुर्थकाल सदृश व्यवस्था को जानकर इन्द्र द्वारा ग्राम, नगर आदि की रचना करवाई एवं कर्मभूमि की समस्त व्यवस्थाओं से प्रजा को परिचित कराकर आदिब्रह्मा, प्रजापति आदि नामों से विख्यात हुए । उस समय भगवान ऋषभदेव ने हरि, अकम्पन, कश्यप और सोमप्रभ नामक महाक्षत्रियों को बुलाकर उनको महामण्डलेश्वर बनाया तदनन्तर सोमप्रभ राजा भगवान से कुरूराज नाम पाकर कुरूवंश का शिरोमणि हुआ। भगवान ऋषभदेव को दीक्षा के पश्चात् हस्तिनापुर में सर्वप्रथम आहारदान देकर दानतीर्थ की प्रवृत्ति करने वाले राजा श्रेयांस कुरूवंशी थे अत: उनकी सर्वसंर्तात भी कुरूवंशी है ।
हरिवंश पुराण एवं महापुराण इन दोनों में इसकी वंशावलि दी गयी है। भगवान शान्तिनाथ , वुंâथुनाथ अरहनाथ जी जो वर्तमान चौबीसी के १६,१७ व १८ वें तीर्थंकर है जिनका जन्म आदि चार कल्याणक हस्तिनापुर में हुए यह भी कुरूवंशी थे ।

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