Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
  • विशेष आलेख
  • पूजायें
  • जैन तीर्थ
  • अयोध्या

कैलाश  पर्वत (अष्टापद तीर्थ)

June 1, 2022जैन तीर्थ, विशेष आलेखaadesh

भगवान ऋषभदेव की निर्वाणभूमि कैलाश  पर्वत (अष्टापद तीर्थ)


जैसा कि कुन्दकुन्दाचार्य ने निर्वाण भक्ति में कहा है कि—

‘अट्ठावयम्मि उसहो, चंपाए वासुपुज्ज जिणणाहो ।
उज्जंतेणेमिजिणो, पावाएणिव्वुदो महावीरो ।।

ग्रंथों में कथित वह अष्टापद अर्थात् कैलाश पर्वत तो वर्तमान में अन्य तीर्थों की भांति उपलब्ध नहीं है तथापि आगम में कैलाश पर्वत की महिमा पढ़कर जैन समाज के एक ब्रह्मचारी श्री लामचीदास जैन गोलालारे ने विक्रम सम्वत् १८०६ (आज से २५० वर्ष पूर्व) में कैलाश पर्वत की कठिन यात्रा एक व्यन्तर देव की सहायतापूर्वक सम्पन्न की थी, सो उनके द्वारा लिखित एवं ब्र. शीतलप्रसाद द्वारा सम्पादित ‘कैलाश यात्रा’ नामक लघुकाय पुस्तिका से कई दुर्लभ जानकारियाँ प्राप्त होती हैं । जैसा वे उसमें लिखते हैं—

‘शास्त्रजी में ऐसा कहा गया है कि अयोध्याजी से उत्तर की ओर कैलाशगिरि १६०० कोस है सो सत्य है । हम मारग का फेर खाते हुए प्रथम पूर्व ओर, फिर उत्तर, पश्चिम और दक्षिण ओर ९८९४ कोस गये आये । कैलाश तिब्बत के दक्षिण दिशा में हनवर देश में परले किनारे पर हैं ।’

उन्होंने लिखा है कि ‘कैलाशगिरि की चारों दिशाओं में एक-एक योजन के आठ सिवान हैं इसीलिये गिरि का नाम अष्टापद भी है, गिरि की परिक्रमा ४० योजन की है । वह कैलाश पर्वत मेरूगिरि के समान महा रमणीक, सुन्दर है। मैंने दो प्रहर तक वहाँ रुककर अच्छी तरह दर्शन किेये सो प्रथम तो ऋषभदेश का टोंक बन्दा । वहाँ तीन चौबीसी की ७२ प्रतिमाएँ हैं । पर्वत के चारों ओर ४ कोस गहरा समर गंग है। इस प्रकार अनेक प्रत्यक्ष दृष्ट मंदिर-प्रतिमा आदि का वर्णन उस पुस्तक में है जिससे प्रतिभासित होता है कि चीन और तिब्बत की सीमा पर बसा हुआ कैलाश पर्वत वास्तव में युगादि का कैलाश पर्वत आज भी सुरक्षित है, किन्तु वर्तमान में उसे जैन तीर्थ के रूप में नहीं प्रत्युत शिव-गौरी के निवास के रूप में ‘कैलाश और मानसरोवर’ के नाम से जाना जाता है और प्रतिवर्ष हजारों यात्री हिममयी शिवजी के दर्शन करने जाते हैं ।

भारत सरकार की ओर से वहाँ जाने वाले तीर्थ यात्रियों की पूर्ण सुरक्षा प्रबन्ध के बावजूद भी प्रतिवर्ष वहाँ घटित दुर्घटनाओं में तमाम यात्री अपने प्राणों की बलि भी चढ़ा देते हैं, फिर भी अनेक जन वहाँ जाने को इसलिये उत्सुक रहते हैं कि आखिर वहाँ है क्या ? दिल्ली से अलमोड़ा, कौसानी, नवी ढांग पहुँचकर वहाँ से भारत की सीमा पारकर तिब्बत में प्रवेश करना होता है । कहते हैं कि १८,४०० फुट ऊँचे लिपुंलेख के दर्रे को पार करने की चुनौती से यात्रियों का मन तो कांपने लगता है, किन्तु ग्यारह-बारह दिन की कठिन यात्रा के पश्चात् वहाँ पहुँचकर अपार खुशी भी होती है ।

कैलाश पर्वत पर हिमखंड का शिवलिंग भी देखा जाता है । इतिहासकारों का मानना है कि काश्मीर के महाराज के एक सेनापति जोरावरसिंह थे, उन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी पश्चिम तिब्बत में कैलाश-मानसरोवर का पूरा क्षेत्र जीत लिया था ।

वर्तमान में इन प्रत्यक्षदर्शियों की बात से भी प्रतीत होता है कि यह ऋषभदेव का निर्वाण स्थल कैलाश पर्वत ही होगा क्योंकि उसके चारों ओर आज भी गहरी खाई मिली है । हाँ इतना अवश्य है कि आज उस कैलाश पर्वत से जैनत्व के चिन्ह या तो धर्मविद्वेष से हटा लिये गये हैं अथवा वे स्वयं नष्ट-भ्रष्ट हो गये हैं । किसी विशिष्ट जैन इतिहासकार को वहाँ जाकर अन्वेषण अवश्य करना चाहिये ।

उस दुर्लभ कैलाश पर्वत की प्रतिकृति के रूप में ही उत्तरप्रदेश के चमौली जिले में बद्रीनाथ को वर्तमान में तीर्थंकर श्री ऋषभदेव की निर्वाणस्थली मानकर उसका जो विकास हो रहा है वह भी सराहनीय प्रयास है । वहाँ के ट्रस्ट ‘आदिनाथ आध्यात्मिक अहिंसा फाउण्डेशन’ के अध्यक्ष श्री देवकुमार सिंह जी जैन कासलीवाल, इन्दौर एवं महामंत्री कैलाशचन्द जी जैन चौधरी, इन्दौर ने दिसम्बर १९९६ में पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी से जब उस अष्टापद (बद्रीनाथ) की ओर विहार करने तथा वहाँ के विकास के बारे में निवेदन किया तब माताजी ने उन्हें वहाँ चौबीस तीर्थंकरों के चरणचिन्ह विराजमान करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि इससे तीर्थ का अतिशय दिग्दिगन्तव्यापी फैलेगा । प्रसन्नता की बात है कि २६ जून १९९८ को विशेष समारोह पूर्वक वहाँ उन छतरियों की स्थापना भी हो चुकी है और अब वहाँ अनेक दिगम्बर जैन साधु एवं हजारों दर्शनार्थी प्रतिवर्ष जाते हैं ।
इस प्रकार से प्राचीन एवं अर्वाचीन अष्टापद तीर्थ का अस्तित्व स्पष्ट रूप से सामने आया है जिसे निर्वाणस्थली के रूप में जैन समाज स्वीकार करता हैं ।

भजन

तर्ज-मन मंदिर में………………..

सबसे ऊँची प्रतिमा बनाया है, मांगीतुंगी गिरी पर।
पर्वत के ऊपर, मांगीतुंगी गिरी पर।।ऊँची…..।।टेक.।।
है एक सौ आठ फुट ऊँची प्रतिमा,
दुनिया में इक मा त्र है इसकी गरिमा।
अतिशायि प्रतिमा बनाया है, मांगीतुंगी गिरी पर।।सबसे ऊँची.।।१।।
हम पुण्यशाली हैं आज भक्तों,
श्री ज्ञानमती मात के दर्श कर लो।
उनका ही चिंतन दिखाया है, मांगीतुंगी गिरी पर।।सबसे ऊँची.।।२।।
तन, मन व धन सार्थक किया सबने,
मंत्र जाप्य भी किया हम सबने।
दैवी चमत्कार पाया है, मांगीतुंगी गिरी पर।।सबसे ऊँची.।।३।।
करने, कराने वाले सुखी हों
तीरथ की ‘‘चन्दनामति’’ उन्नती हो।
सिद्धी का धाम बनाया है, मांगीतुंगी गिरी पर।।सबसे ऊँची.।।४।।

Tags: Kailash parvat, Our Tirths
Previous post प्रयाग तीर्थ Next post हस्तिनापुर तीर्थ

Related Articles

प्रयाग तीर्थ

June 1, 2022aadesh

हस्तिनापुर तीर्थ

June 1, 2022aadesh

अयोध्या तीर्थ

May 26, 2022aadesh
Privacy Policy