
—संकलन —शशी प्रभा लुहाड़िया
| (१) नि:शंकित | (२) नि:कांक्षित | 
| (३) निर्विचिकित्सा | (४) अमूढदृष्टि | 
| (५) उपगूहन | (६) स्थितिकरण | 
| (७) प्रभावना | (८) वात्सल्य | 
| (१) व्यंजनाचार | (२) अर्थाचार | 
| (३) उभयाचार | (४) कालाचार | 
| (५) विनयाचार | (६) उपधानाचार | 
| (७) बहुमानाचार | (८) अनिन्ह्वाचार | 
| (१) आहिंसा | (२) सत्य | 
| (३) अचौर्य | (४) ब्रह्मचर्य | 
| (५) अपरिग्रह | (६) ईयासमिति | 
| (७) भाषासमिति | (८) एषणासमिति | 
| (९) आदान निक्षेपण | (१०) प्रतिष्ठापन समिति | 
| (११) मनोगुप्ति | (१२) वचन गुप्ति | 
| (१३) काय गुप्ति | 
पच्ची दोषों से रहित तथा चार लक्षण सहित।
एकेन्द्रिय के दो तथा विकलत्रय के सत्ताईस।
