ऋषभगिरि, मांगीतुंगी में जब-जब भक्तों ने १०८ फुट भगवान ऋषभदेव प्रतिमा का दर्शन किया, तब हर व्यक्ति प्रतिमा की प्रशंसा और इस महान कार्य के लिए नि:शब्द हो गया और प्रतिमा निर्माण को केवल एक महान आश्चर्य तथा पूज्य माताजी की तपस्या का चमत्कार कहकर सभी ने दांतों तले उंगलियाँ चबाई।
ये तो समाज के श्रद्धालु भक्तों के कथन थे, जिनको हम लगातार सुन रहे थे। लेकिन विश्व के महान आश्चर्यों को प्रामाणिक करने वाली दुनिया की एकमात्र विश्वप्रसिद्ध संस्था, ‘‘गिनीज वर्ल्ड रिकार्ड-लंदन’’ ने जब १०८ फुट ऊँची भगवान ऋषभदेव प्रतिमा को अपने ‘‘विश्व रिकार्ड’’ में शामिल किया, तो सारे देश ही नहीं विदेशों में जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की जय-जयकार होने लगी। गिनीज वर्ल्ड रिकार्ड की वेबसाइट और फेसबुक पर विश्व के महान आश्चर्य के रूप में ऋषभगिरि के १०८ फुट भगवान ऋषभदेव का प्रगट होना समाज के लिए गौरव का विषय बन गया और जैन ही नहीं अपितु संसार के संख्यातीत बुद्धिजीवियों ने जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव तथा उनके प्रमुख सिद्धान्त ‘‘अहिंसा परमोधर्म:’’ को जानने-समझने का प्रयास किया।
जी हाँ! महोत्सव के समापन अवसर पर दिनाँक ६ मार्च २०१६ को वह शुभ घड़ी आई, जब गिनीज वर्ल्ड रिकार्ड के अधिकारियों ने ऋषभगिरि, मांगीतुंगी पधारकर भगवान ऋषभदेव प्रतिमा का स्वत: माप लिया और वर्ल्ड रिकार्ड के सैद्धान्तिक नियमों के आधार पर अंगूठे से लेकर प्रतिमा की चोटी तक ऊँचाई का माप किया। गिनीज वर्ल्ड रिकार्ड के अनुसार यह प्रतिमा बालों की ऊँचाई सहित अखण्ड पाषाण में ११३ फुट अर्थात् ३४.४४ मीटर ऊँचाई वाली बनाई गई है। अत: गिनीज वर्ल्ड रिकार्ड में यह प्रतिमा ‘‘विश्व की सबसे ऊँची जैन प्रतिमा’’ के रूप में विश्व का एक महान आश्चर्य बन चुकी है।