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गौतम गणधर वाणी (अध्याय -6)

August 25, 2022गौतम गणधर वाणीSurbhi Jain

अध्याय ६ – गणधरवलय मंत्र


णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।।१।। णमो जिणाणं, णमो ओहिजिणाणं, णमो परमोहिजिणाणं, णमो सव्वोहिजिणाणं, णमो अणंतोहिजिणाणं, णमो कोट्ठ-बुद्धीणं, णमो बीजबुद्धीणं, णमो पादाणुसारीणं, णमो संभिण्णसोदाराणं, णमो सयंबुद्धाणं, णमो पत्तेयबुद्धाणं, णमो बोहियबुद्धाणं, णमो उजुमदीणं, णमो विउलमदीणं, णमो दसपुव्वीणं, णमो चउदस-पुव्वीणं, णमो अट्ठंग-महा-णिमित्त-कुसलाणं, णमो विउव्व-इड्ढि-पत्ताणं, णमो विज्जाहराणं, णमो चारणाणं, णमो पण्णसमणाणं, णमो आगास-गामीणं, णमो आसीविसाणं, णमो दिट्ठिविसाणं, णमो उग्गतवाणं, णमो दित्ततवाणं, णमो तत्ततवाणं, णमो महातवाणं, णमो घोरतवाणं, णमो घोरगुणाणं, णमो घोर-परक्कमाणं, णमो घोरगुण-बंभयारीणं, णमो आमोसहि-पत्ताणं, णमो खेल्लोसहिपत्ताणं, णमो जल्लोसहिपत्ताणं, णमो विप्पोसहि-पत्ताणं, णमो सव्वोसहिपत्ताणं, णमो मणबलीणं, णमो वचिबलीणं, णमो कायबलीणं, णमो खीरसवीणं, णमो सप्पिसवीणं, णमो महुरसवीणं, णमो अमियसवीणं, णमो अक्खीण-महाणसाणं, णमो वड्ढमाणाणं, णमो सिद्धायदणाणं, णमो भयवदो महदि महावीर-वड्ढमाण-बुद्धरिसीणो चेदि।

जस्संतियं धम्मपहं णियच्छे तस्संतियं वेणइयं पउंजे।

काएण वाचा मणसावि णिच्चं, सक्कारए तं सिर-पंचमेण१।।१।।

शंभु छंद

मैं नमूं जिनों को जो अर्हन् अवधीजिन मुनि को नमूं नमूं।

परमावधिजिन को नमूँ तथा, सर्वावधि जिन को नमूं नमूं।।

मैं नमूं अनंतावधिजिन को, अरु कोष्ठबुद्धियुत साधु नमूं।

मैं नमूं बीजबुद्धीयुतमुनि, पादानुसारियुत साधु नमूं।।१।।

संभिन्नश्रोतृयुत साधु नमूं, मैं स्वयंबुद्ध मुनिराज नमूं।

प्रत्येक बुद्ध ऋषिराज नमूं, पुनि बोधित बुद्ध मुनीश नमूं।।

ऋजुमतिमनपर्यय साधु नमूं, मैं विपुलमतीयुत साधु नमूं।

मैं नमूं अभिन्न सुदशपूर्वी, चौदशपूर्वी मुनिराज नमूं।।२।।

अष्टांगमहानिमित्तकुशली, नमूं नमूं विक्रियाऋद्धि प्राप्त।

विद्याधरऋषि को नमूं नमूं मैं, संयत चारणऋद्धि प्राप्त।।

मैं प्रज्ञाश्रमणमुनीश नमूं, आकाशगामि मुनिराज नमूं।

आशीविषयुत ऋषिराज नमूं दृष्टीविषयुतमुनिराज नमूं।।३।।

मैं उग्रतपस्वी नमूं दीप्ततपि नमूं तप्ततपसाधु नमूं।

मैं नमूं महातपधारी को, अरु घोरतपोयुत साधु नमूं।।

मैं नमूं घोरगुणयुत साधु, मैं घोरपराक्रम साधु नमूं।

मैं नमूं घोरगुणब्रह्मचारि, आमौषधिप्राप्त मुनीश नमूंं।।४।।

क्ष्वेलौषधिप्राप्त मुनीश नमूं, जल्लौषधि प्राप्त मुनीश नमूूं।

विपु्रष औषधियुत साधु नमूं, सर्वौषधिप्राप्त मुनीश नमूं।

मैं नमूं मनोबलि मुनिवर को, मैं वचनबली ऋद्धीश नमूं।

मैं कायबली मुनिनाथ नमूं, मैं क्षीरस्रावी साधु नमूं।।५।।

मैं घृतस्रावी मुनिराज नमूं, मैं मधुरस्रावी साधु नमूं।

मैं अमृतस्रावी साधु नमूं, अक्षीणमहानस साधु नमूं।।

मैं वर्धमान ऋद्धीश नमूँ, मैं सिद्धायतन समस्त नमूं।

मैं भगवत् महति महावीर, -श्री वर्धमान बुद्धर्षि नमूं।।६।।

जिनके निकट मैं धर्म पथ को प्राप्त किया हूँ।

उनके निकट ही विनयवृत्ति धार रहा हूँ।।

नित काय से वचन से और मन से उन्हीं को।

पंचांग नमस्कार करूं भक्तिभाव सो।।१।।

इति श्री गौतमगणधरवाण्यां षष्ठोऽध्याय:।।६।।

Tags: Goutam gadhar vaani
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