

चलो सभी मिल पूजा करने, श्री चक्रेश्वरी माता की। 
अष्टद्रव्य का थाल सजाकर, लाए हैं हम माता।
स्वर्ण कटोरी में सुरभित, चन्दन घिसकर ले आऊँ। 
जब श्री ऋषभदेव प्रभुवर ने, अक्षयपद पाया था। 
तरह-तरह के फूलों के, गहनों से तुझे सजाऊँ।
लड्डू पेड़ा बरफी गुझिया, भरकर थाल चढ़ाऊँ। 
जगमग-जगमग दीप जलाकर, करूँ आरती तेरी। 
जग के प्राणी तरह-तरह से, अपना रूप सँवारें। 
तरह-तरह के फल खाकर भी, तृष्णा शान्त न होती। 
जल चन्दन अक्षत पुष्पों से, मिश्रित अर्घ्य बनाऊँ। 
