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चार शिक्षाव्रत

February 22, 2014स्वाध्याय करेंjambudweep

चार शिक्षाव्रत


देशावकाशिक, सामायिक, प्रोषधोपवास और अतिथि संविभाग-व्रत।

देशावकाशिक- दिग्व्रत में प्रमाण किये हुए विशाल प्रदेश में ग्राम, गली, मुहल्ला आदि की सीमा करके प्रतिदिन या माह, आदि से आने-जाने का त्याग करना।

सामायिक- वन, गृह अथवा चैत्यालय आदि में चित्त की व्याकुलता रहित एकान्त स्थान में निर्मल बुद्धि श्रावक को सामायिक करना चाहिए।

प्रोषधोपवास व्रत- सर्वदा अष्टमी और चतुर्दशी के दिन व्रत करने की इच्छा से अनशन आदि चतुराहार का त्याग करना।

उपवास, प्रोषध और प्रोषधोपवास में भेद

चार प्रकार के आहार का त्याग करना उपवास है। दिन में एक बार भोजन करना प्रोषध है और उपवास करके धारणा एवं पारणा के दिन एकाशन करना प्रोषधोपवास है।

अतिथि संविभाग-गुणनिधि, तपोधन साधुओं को विधि तथा योग्य द्रव्यादि के द्वारा दान देना अतिथिसंविभाग व्रत है। श्री समन्तभद्र स्वामी ने इस अतिथि संविभाग व्रत में भगवत् पूजा करने का उपदेश दिया है। ‘‘आदर सहित श्रावक को नित्य ही वांछित वस्तुदायक, कामविनाशक देवाधिदेव अरहंत देव की पूजा करना चाहिए। यह पूजा सम्पूर्ण दुःखों का नाश करने वाली है।’’

Tags: Shraavak Vrat
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