

गणधर बिना तीर्थेश की, वाणी न खिर सकती कभी।
पयोराशि का नीर निर्मल भराऊँ।
सुगंधीत चंदन लिये भर कटोरी।


जुही केतकी पुष्प की माल लाऊँ।
सरस मिष्ट पक्वान्न अमृत सदृश ले।


अगुरु धूप खेते उड़े धूम्र नभ में।
अनन्नास नींबू बिजौरा लिये हैं।



श्री ऋषभदेव जिनेन्द्र के, चौरासि गणधर मान्य हैं।


संभव जिनेश्वरके सु इक सौ, पाँच गणधर ख्यात हैं।
जिन अभिनंदन के गणाधिप, एक सौ त्रय ख्यात हैं।
श्री सुमति जिनके एक सौ, सोलह गणाधिप मान्य हैं।
श्रीपद्मप्रभ के एक सौ, ग्यारह गणाधिप ख्यात हैं।
जिनवर सुपारस के गणीश्वर ख्यात पंचानवे हैं।
श्री चन्द्रप्रभ के गणपती, तेरानवे गणपूज्य हैं।
श्री पुष्पदंत जिनेश के, गणधर अठासी मान्य हैं।
शीतल जिनेश्वर के सत्यासी, गणधरा जग वंद्य हैं।
श्रेयांस जिनके पास सत्तत्तर गणाधिप श्रेष्ठ हैं।
श्री वासुपूज्य जिनेन्द्र के, छ्यासठ गणाधिप गण धरें।
विमलनाथ के गणधर पचपन, सब ऋद्धि से पावन।
श्री अनंत जिनवर के गणधर, हैं पचास गुण आकर।
धर्मनाथ के गणधर सब, ऋद्धी से पूर्ण तितालिस।
शांतिनाथ के छत्तिस गणधर, चौंसठ ऋद्धि समन्वित।
कुन्थुनाथ के पैंतिस गणधर, शिवपथ विघ्न विनाशें।
अर जिनवर के तीस गणाधिप, सर्वऋद्धि के धारी।
मल्लिनाथ के अट्ठाइस गण-नायक गुणमणि धारें।
मुनिसुव्रत के अठरह गणधर, व्रत गुण शील समन्वित।
नमि जिनवर के सत्रह गणधर, यम नियमों के सागर।
नेमिनाथ के ग्यारह गणधर, ऋद्धि सिद्धि गुण धारें।
पार्श्वनाथ के दश गणधर गुरु, चौंसठ ऋद्धि धरे हैं।
महावीर प्रभु के गणधर हैं, ग्यारह सब गुण पूरे।
चौबिस जिनके सब गणधर गुरु, चौंसठ ऋद्धी को धारे हैं।
जय जय श्री गणधर, धर्म धुरंधर, जिनवर दिव्यध्वनी धारें।