Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
  • विशेष आलेख
  • पूजायें
  • जैन तीर्थ
  • अयोध्या

जयसेन चक्रवर्ती

February 12, 2017तीर्थंकरjambudweep

जयसेन चक्रवर्ती


भगवान नमिनाथ के तीर्थ में जयसेन नाम के ग्यारहवें चक्रवर्ती हुए हैं। इसी जम्बूद्वीप के उत्तर में ऐरावत क्षेत्र में श्रीपुर नगर के राजा ‘वसुंधर’ राज्य संचालन कर रहे थे। किसी समय रानी पद्मावती के मरण से दु:खी हुए मनोहर नाम के वन में वरचर्य (वरधर्म) नाम के केवली भगवान की गंधकुटी में पहुँचे। धर्मोपदेश सुनकर विरक्तमना हुए अपने पुत्र विनयंधर को राज्यभार सौंपकर अनेक राजाओं के साथ दीक्षाग्रहण कर ली। अंत में समाधिपूर्वक मरण करके महाशुक्र स्वर्ग में देव हो गए। वहाँ पर सोलह सागर की आयु को व्यतीत कर वहाँ से च्युत होकर कौशाम्बी नगरी के इक्ष्वाकुवंशीय राजा विजय की महारानी प्रभाकरी के पुत्र हुए। इनका नाम ‘जयसेन’ रखा, इनकी आयु तीन हजार वर्ष की थी, साठ हाथ शरीर की ऊँचाई थी, स्वर्णिम शरीर की कांति थी। ये चौदह रत्न और नवनिधियों के स्वामी ग्यारहवें चक्रवर्ती हुए हैं। किसी समय राजमहल की छत पर अपनी रानियों के साथ बैठे थे। उसी समय आकाश से गिरते हुए ‘उल्का’ को देखा। तत्क्षण ही वैराग्य भावना का चिंतवन करके अपने बड़े पुत्र को राज्य देना चाहा, किन्तु उसके मना करने पर छोटे पुत्र को राज्य देकर ‘वरदत्त’ नाम के केवली भगवान के पादमूल में अनेक राजाओं के साथ संयम धारण कर लिया। तपस्या के प्रभाव से श्रुत, बुद्धि, तप, विक्रिया, औषधि और चारणऋद्धि से विभूषित हो गए। अंत में सम्मेदशिखर के चरण नामक ऊँचे शिखर पर प्रायोपगमन सन्यास धारण कर आत्मा की आराधना करते हुए शरीर छोड़कर ‘जयंत’ नाम के अनुत्तर विमान में अहमिन्द्र हो गये१। आगे ये नियम से मोक्ष प्राप्त करेंगे।

 

Tags: Chakrvarti
Previous post भगवान पार्श्वनाथ जीवन दर्शन Next post कतिपय लोक व्यवहारी, आवश्यक एवं महत्वपूर्ण शिक्षाएँ-प्रेरणाएँ

Related Articles

सनत्कुमार चक्रवर्ती

July 20, 2017jambudweep

ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती

February 12, 2017jambudweep

महापद्म चक्रवर्ती का संक्षिप्त परिचय

July 18, 2017jambudweep
Privacy Policy