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जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं रीति, प्रीति, नीति

February 10, 2017स्वाध्याय करेंjambudweep

जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं रीति, प्रीति, नीति


हमारे आचरण और व्यवहार पर पूरे संसार की दृष्टि जमी है। सभी उस मार्ग का अनुसरण करते हैं जिस पर महाजन चलते हैं। महा यीन महान और जन मानी व्यक्ति । हम इसलिये विश्व गुरू कहलाये। यह पद हमारे को यूं ही नहीं मिल गया । इसके पीछे कई तत्व जुड़े हैं। महाकवि तुलसी की ये पंक्तियां कितनी सटीक मार्गदर्शक है। रघुकुल रीति सदा चली आई प्राण जाइ पर वचन न जाई रीति सर्व प्रिय और सर्वमान्य होती है। अहिंसा, सत्य,पर सेवा, दयालुता, सदाचरण, चरित्र, पर दुख कतरना, क्षमा, लोभ रहित जीवन, शुचिता आदि गुण मनुष्य को महान बनाते हैं। महाजन के गले की माला के ये गुप्त मनके होते हैं। वह निसन्देह महान होता है जो अपने साथ—साथ पराई चिन्ता भी करता है। पर हित की भी सोचता है। पराये अपराधों को क्षमा कर देता है। वही सच्चा वीर कहलाता है। किसी को मार देना वीरता नहीं कहलाती, अपने मन को वश में करना सच्ची वीरता है। कहा है क्षमा वीरस्य भूषणम या क्षमा बड़न को चाहिये। जिस समाज में ऐसी रीतियां चलती हो, वह पूज्य हो जाता है। उसकी सर्वत्र प्रशंसा होती है उसका सभी अनुसरण करते हैं। सामाजिक जीवन में उच्च शिक्षा प्राप्त करना, दहेज नहीं लेना, लड़के—लड़की में भेद नहीं करना, मृत्यु भोज न करना, विवाहों में फिजूल खर्ची न करना , दिखावों के आयोजन न करना, अभावग्रस्त लोगों की सेवा करना आदि रीतियां हमें सबसे अलग व श्रेष्ठ बनाती है। जब अधिकांश लोगों की इन रीतियों में प्रीति हो जाती है तो ये जन प्रिय हो जाती है। प्रेम प्रीति से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं होता । राम हर जाति, हर प्राणी, हर वर्ग से प्रीति पालते थे तो सर्व प्रिय थे। उनके लिये सभी समान थे। कृष्ण का प्रेम तो गोपीगान व राधा के रूप में आज भी हमें रोमांचित कर देता है। मीरां हो या अन्य भक्त प्रेम से ही परमात्मा की प्राप्ति हुई है। शिव यदि सबसे प्रेम नहीं करते तो गरल को क्यों पीने को तत्पर हो जाते। उन्होंने विष को दूसरों के हित में ग्रहण कर लिया और प्रीति कर महानता को गौरवान्वित कर दिया। 

आज के संदर्भ में

जो भरा नहीं है भावों से बहती जिसमें रसधारा नहीं वह हृदय नहीं है पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। यह एक आदर्श स्थिति है। प्रेम, प्रीति, अपनत्व व स्नेह प्राण वायु है। इसके बिना जीवन कैसा। आबत ही हरषे नहीं, नैनण नहीं सनेह। तुलसी तहां न जाइए,कंचन बरसे मेह। महान संतों ने भी कहा है कि प्रेम जगत में सार, और कटु सार नहीं। हमें जब उन रीतियों से प्रीति हो जाती है तो वे नीति बन जाती है। मिर्जा गालिब के शब्दों में हम उन किताबों को काबिले जब्ती समझते हैं। जिन्हें पढ़ करके बेटे बाप को सख्ती समझते हैं। सही नीतियां ही समाज की मार्ग वाहक बनती हैं। समाज हो या राष्ट्र सही नीतियां ही उसे सुखी एवं समृद्ध बनाती हैं। कला, संस्कृति, परम्पराएं, संगीत, सभ्यता , वीरता, धीरता, साहित्य, लोक रंग आदि सब सही नीतियों पर आश्रित है। आज हम कुछ भटके से लगते हैं, यह क्यों हो रहा है। कहां हम कमजार हो रहे हैं। कहीं हम धन, मद, अहं, अनीति व झूठे प्रदर्शन के प्रभाव में तो नहीं आ गयें हैं । कहीं हम अपने कमजोर भाईयों को नकारने तो नहीं लगे है। कहीं हम लड़की के जन्म को दुर्भाग्य तो नहीं मानने लगे हैं ये सारे मंथन करते हैं। जो सही व श्रेष्ठ नीतियां हमारे पूर्वजों से बनाई है। जैसे विधुर नीति, चाणक्य नीति आदि उनसे हम डिगे नहीं तो हम सही मायने में महाजन कहलायेंगे वरना गर्त में जाने से कौन रोक सकता है। फूट फजीते में प्रगति कहां मिलेगी। डूबते जीव का कौन सहारा बनता है। हारे हुए सैनिक को कौन माला पहनाता है। अत: उतिष्ठत, जाग्रत, प्राप्य वरान निबोधन उठने का तात्पर्य है सावधान होना का, जाग्रत का तात्पर्य है देखने का। देखने के कारण श्रेष्ठ पुरूषों की पहचान होगी। तभी हम विश्व का मार्गदर्शन कर पायेंगे। यही हमारी रीति हो, उससे प्रीति हो और उसी पर आधारित नीति हो।

आजाद साप्ताहिक, विशेषांक — २०१४
 
Tags: Vishesh Aalekh
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