Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
  • विशेष आलेख
  • पूजायें
  • जैन तीर्थ
  • अयोध्या

शारदा व्रत

June 8, 2020जैन व्रतjambudweep

शारदा व्रत


शारदा-  सरस्वती की आराधना, उपासना, भक्ति आदि से भव्यजीव समीचीन ज्ञान की वृद्धि करते हुए परम्परा से  श्रुतकेवली, केवली   पद को प्राप्त करेंगे। यह व्रत ज्येष्ठ मास में शुक्लपक्ष में एकम से आषाढ़ कृष्णा एकम तक सोलह दिन करना है।

इसी प्रकार आश्विन मास में शुक्ला एकम से कार्तिक कृ. एकम तक पुन: माघ मास में शुक्ला एकम से फाल्गुन कृ. एकम तक, ऐसे वर्ष में तीन बार व्रत करना है। इस व्रत में शास्त्रों की पूजा-द्वादशांग जिनवाणी की पूजा, सरस्वती की मूर्ति की पूजा-जिनके मस्तक पर भगवान अर्हंतदेव की मूर्ति विराजमान हैं ऐसी सरस्वती-शारदा देवी की पूजा करना। इस व्रत में ज्येष्ठ शु. ५, आश्विन शु. ५ और माघ शु. ५ को व्रत, उपवास या एकाशन करना और उन दिनों विशेषरूप से  सरस्वती   की आराधना करना है तथा शेष दिनों में एक बार अन्न का भोजन करना, शक्ति के अनुसार दूसरी बार अल्पाहार-फल-दूध, औषधि आदि लेना चाहिए। रात्रि में चतुर्विध आहार का त्याग करना है।

प्रतिदिन सरस्वती के साथ-साथ महालक्ष्मी देवी की तथा चक्रेश्वरी, पद्मावती आदि शासन देवियों की भी आराधना करना है। ‘सरस्वती महापूजा’ नाम से पुस्तक जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर से मंगाकर उसमें लिखे अनुसार सरस्वती के १०८ मंत्र आदि विधि से ‘महाआराधना’ करना चाहिए।

इस व्रत में ज्येष्ठ शु. पूर्णिमा, आश्विन शु. पूर्णिमा-शरद पूर्णिमा और माघ शु. पूर्णिमा को उपवास या एकाशन से व्रत करके  हस्तिनापुर  , अयोध्या  ,  प्रयाग   आदि तीर्थों पर जाकर उन-उन  केवलज्ञान   भूमि की पूजा करके  सरस्वती   की विशेष आराधना करें। आज उपलब्ध सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ- षट्खण्डागम   ग्रंथों की पूजा करके अगले दिन एकम-प्रतिपदा को पारणा करना है।

यह व्रत  सम्यग्ज्ञान   की वृद्धि में तो निमित्त है ही, इसके प्रभाव से तत्काल में सांसारिक नाना प्रकार के सुख, शांति, सम्पत्ति, संतति आदि की वृद्धि होती है और आगे परम्परा से द्वादशांग का ज्ञान प्राप्त कर नियम से केवलज्ञान को तथा  मोक्ष   को प्राप्त करेंगे।

इसका मंत्र

ॐ ह्रीं द्वादशांगवाणीसरस्वतीदेव्यै नम:।

अथवा

ॐ ह्रीं श्रीं वद वद वाग्वादिनि भगवति सरस्वति ह्रीं नम:।

लक्ष्मी मंत्र      ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूँ ऐं महालक्ष्म्यै नम:।

चक्रेश्वरी मंत्र  ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्री चक्रेश्वरी देव्यै नम:।

पद्मावती मंत्र  ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्री पद्मावती देव्यै नम: मम ईप्सितं कुरु कुरु स्वाहा।

इस प्रकार से जाप्य करें।

सरस्वती के १०८ मंत्रों से विधान-आराधना आदि करें। एक वर्ष में तीन बार इस व्रत को करके बड़े रूप में सरस्वती की आराधना करके सरस्वती की प्रतिमा बनवाकर मंदिरों में विराजमान करें। यह व्रत सब प्रकार के मनोरथों को सफल करने वाला है।

Tags: Vrata
Previous post अनन्त चौदश व्रत विधि Next post अष्टान्हिका व्रत

Related Articles

मुक्तावली व्रत!

July 11, 2017jambudweep

तपोञ्जलि व्रत!

July 17, 2017jambudweep

अक्षयतृतीया व्रत!

September 19, 2017jambudweep
Privacy Policy