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ज्योतिर्लोक का वर्णन

July 27, 2017स्वाध्याय करेंjambudweep

ज्योतिर्लोक का वर्णन


ज्योतिष्क देवों के भेद

ज्योतिष्क देवों के ५ भेद हैं –  सूर्य  चन्द्रमा  ग्रह  नक्षत्र  तारा। इनके विमान चमकीले होने से इन्हें ज्योतिष्क देव कहते हैं। ये सभी विमान अर्धगोलक के सदृश हैं तथा मणिमय तोरणों से अलंकृत होते हुये निरन्तर देव-देवियों से एवं जिन मंदिरों से सुशोभित रहते हैं। अपने को जो सूर्य, चन्द्र, तारे आदि दिखाई देते हैं यह उनके विमानों का नीचे वाला गोलाकार भाग है।ये सभी ज्योतिर्वासी देव मेरू पर्वत को ११२१ योजन अर्थात् ४४,८४,००० मील छोड़कर नित्य ही प्रदक्षिणा के क्रम से भ्रमण करते हैं। इनमें चन्द्रमा एवं सूर्य ग्रह ५१० योजन प्रमाण गमन क्षेत्र में स्थित परिधियों के क्रम से पृथक्-पृथक् गमन करते हैं। परन्तु नक्षत्र और तारे अपनी-अपनी एक परिधि रूप मार्ग में ही गमन करते हैं।
ज्योतिष्क देवों की पृथ्वी तल से ऊँचाई का क्रम – उपरोक्त ५ प्रकार के ज्योतिर्वासी देवों के विमान इस चित्रा पृथ्वी से ७९० योजन से प्रारम्भ होकर ९०० योजन की ऊँचाई तक अर्थात् ११० योजन में स्थित हैं। यथा—इस चित्रा पृथ्वी से ७९० योजन के ऊपर प्रथम ही ताराओं के विमान हैं। अनन्तर १० योजन जाकर अर्थात् पृथ्वीतल से ८०० योजन जाकर सूर्य के विमान हैं तथा ८० योजन अर्थात् पृथ्वी तल से ८८० योजन (३५,२०,००० मील) पर चन्द्रमा के विमान हैं। (पूरा विवरण चार्ट नं-३ में देखिये) चार्ट नं-३
ज्योतिष्क देवों की पृथ्वी तल से ऊँचाई – विमानों के नाम (चित्रा पृथ्वी से ऊँचाई) योजन में मील में इस पृथ्वी से तारे ७९० योजन से ऊपर ३१६०००० मील पर इस पृथ्वी से सूर्य ८०० योजन से ऊपर ३२००००० मील पर इस पृथ्वी से चन्द्र ८८० योजन से ऊपर ३५२०००० मील पर इस पृथ्वी से नक्षत्र ८८४ योजन से ऊपर ३५३६००० मील पर इस पृथ्वी से बुध ८८८ योजन से ऊपर ३५५२००० मील पर इस पृथ्वी से शुक्र ८९१ योजन से ऊपर ३५६४००० मील पर इस पृथ्वी से गुरु ८९४ योजन से ऊपर ३५७६००० मील पर इस पृथ्वी से मंगल ८९७ योजन से ऊपर ३५८८००० मील पर इस पृथ्वी से शनि ९०० योजन से ऊपर ३६००००० मील पर
सूर्य, चन्द्र आदि के विमानों का प्रमाण – सूर्य का विमान योजन का है। यदि १ योजन में ४००० मील के अनुसार गुणा किया जाये तो ३१४७ मील का होता है एवं चन्द्रमा का विमान योजन अर्थात् ३६७२ मील का है। शुक्र का विमान १ कोश का है। यह बड़ा कोश लघु कोश से ५०० गुणा है। अत: ५०० २ मील से गुणा करने पर १००० मील का आता है। इसी प्रकार आगे— ताराओं के विमानों का सबसे जघन्य प्रमाण कोश अर्थात् २५० मील का है। (देखिये चार्ट नं-४) चार्ट नं-४
ज्योतिष्क देवों के बिम्बों का प्रमाण – बिम्बों का प्रमाण योजन से मील से किरणें सूर्य योजन ३१४७ १२००० चन्द्र योजन ३६७२ १२००० शुक्र १ कोश १००० २५०० बुध कुछ कम आधा कोश कुछ कम ५०० मील मंद किरणें मंगल कुछ कम आधा कोश कुछ कम ५०० मील मंद किरणें शनि कुछ कम आधा कोश कुछ कम५०० मील मंद किरणें गुरु कुछ कम १ कोश कुछ कम १००० मील मंद किरणें राहु कुछ कम १ योजन कुछ कम ४००० मील मंद किरणें केतु कुछ कम १ योजन कुछ कम ४००० मील मंद किरणें तारे कोश २५० मील मंद किरणें इन सभी विमानों की बाह्य (मोटाई) अपने-अपने विमानों के विस्तार से आधी-आधी मानी गयी है। राहु के विमान चन्द्र विमान के नीचे एवं केतु के विमान सूर्य विमान के नीचे रहते हैं अर्थात् ४ प्रमाणांगुल (२००० उत्सेधांगुल) प्रमाण ऊपर चन्द्र-सूर्य के विमान स्थित होकर गमन करते रहते हैं। ये राहु-केतु के विमान ६-६ महीने में पूर्णिमा एवं अमावस्या को क्रम से चन्द्र एवं सूर्य के विमानों को आच्छादित करते हैं। इसे ही ग्रहण कहते हैं।
ज्योतिष्क विमानों की किरणों का प्रमाण- सूर्य एवं चन्द्र की किरणें १२०००-१२००० हैं। शुक्र की किरणें २५०० हैं। बाकी सभी ग्रह, नक्षत्र एवं तारकाओं की मंद किरणें हैं।
वाहन जाति के देव- इन सूर्य और चन्द्र के प्रत्येक (विमानों को) आभियोग्य जाति के ४००० देव विमान के पूर्व में सिंह के आकार को धारण कर, दक्षिण में ४००० देव हाथी के आकार को, पश्चिम में ४००० देव बैल के आकार को एवं उत्तर में ४००० देव घोड़े के आकार को धारण कर (इस प्रकार १६००० देव) सतत खींचते रहते हैं। इसी प्रकार ग्रहों के ८०००, नक्षत्रों के ४००० एवं ताराओं के २००० वाहन जाति के देव होते हैं। गमन में चन्द्रमा सबसे मंद है। सूर्य उसकी अपेक्षा शीघ्रगामी है। सूर्य से शीघ्रतर ग्रह, ग्रहों से शीघ्रतर नक्षत्र एवं नक्षत्रों से भी शीघ्रतर गति वाले तारागण हैं।
शीत एवं उष्ण किरणों का कारण – पृथ्वी के परिणामस्वरूप (पृथ्वीकायिक) चमकीली धातु से सूर्य का विमान बना हुआ है, जो कि अकृत्रिम है। इस सूर्य के बिम्ब में स्थित पृथ्वीकायिक जीवों के आतप नामकर्म का उदय होने से उसकी किरणें चमकती हैं तथा उसके मूल में उष्णता न होकर सूर्य की किरणों में ही उष्णता होती है। इसलिये सूर्य की किरणें उष्ण हैं। उसी प्रकार चन्द्रमा के बिम्ब में रहने वाले पृथ्वीकायिक जीवों के उद्योत नामकर्म का उदय है जिसके निमित्त से मूल में तथा किरणों में सर्वत्र ही शीतलता पाई जाती है। इसी प्रकार ग्रह, नक्षत्र, तारा आदि सभी के बिम्ब—विमानों के पृथ्वीकायिक जीवों के भी उद्योत नामकर्म का उदय पाया जाता है।
 
Tags: Jain Jyotirlok
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