प्राणों का पुण्य समर्पण हो, तुम जन्म-जन्म का वंदन हो हे
परम आर्यिका ज्ञानमती, तुम श्वासों का अभिनंदन हो।।
क्या कहे काव्य तुम पर कोई, कोई कैसे तुम पर गीत लिखे।
इन हाथों से कैसे कोई, तप-त्याग-राग की रीति लिखे।।
भाव नहीं मुझमें ऐसे, जो माता का अनुराग लिखूँ।
‘जिन’ भक्ति नहीं मुझमें ऐसी, जो आगम का अनुवाद लिखूँ।।
कैसे मैं गाऊँ प्रीत तेरी, ‘‘मैना’’ का कैसे मौन लिखूँ।
मैं कौन! कहाँ से आया जो, तेरी मोहिनी का रूप लिखूँ।।
रत्न देश भूषण जी से जो, दीक्षा ले व्रत पाल रहीं।।
ब्रह्मचर्य व्रत लेकर जो पल-पल संयम की ढाल रहीं।।
ऐसी गणिनी तुम वाग्देवी, चारित्र चन्द्रिका चन्दन हो।
प्राणों का पुण्य समर्पण हो तुम, जन्म-जन्म का वंदन हो।।
राष्ट्र देश का गौरव तुम, न्याय नमन ‘युग प्रवर्तिका’।
वात्सल्य मूर्ति, आर्यिका रत्न, तुम धर्म ध्यान की चन्द्रिका।।
तुम शब्दों का हो स्वयं शिल्प, प्रभु अमृत घट की घाटी हो।
विधि का हो विषद विधान ध्यान, तुम भक्ती की परिपाटी हो।।
क्षुल्लिका बनीं तुम वीरमती, जिन धारा सी हो निरमलता।
क्षमा दान की देवी स्वयं, तुम वाणी जैसी निश्छलता।।
तुम सुकुमारी हो सूरज की, विद्या की विदुर कुमारी हो।
तुम संस्कार का सकल योग, धरती की प्रखर प्रभारी होे।।
शिक्षा की शील कथा अमृत, तुम बहुआयामी चन्दन हो।
प्राणों का पुण्य समर्पण हो, तुम जन्म-जन्म का वन्दन हो।।
हर भाषा का भाष्य लिये, तुम चलीं दिगम्बर मन लेकर।
कदम-कदम उत्कर्ष मिला, नव-दृष्टि, सृष्टि का तन लेकर।।
तुम चतुर्मुखी भावों का धन, उर-प्रीत-रीत की पावनता।
तुम जम्बूद्वीप का ज्ञान सृजन, नव ज्योति पुंज की साधनता।।
तुम सत्य समागम शैल शिखर, रहती कुण्डलपुर तीर्थ निकट।
कविता सी कुन्तल काया तुम, हो जैन-बैन का मोर मुकुट।।
तुम णमोकार का महामंत्र, ले उर में अनुपम गान लिये।
जल मंदिर जैसी अगम धार, नवग्रह शांति का दान लिये।।
विहंस-विहंस गाती पीड़ा, तुम स्वयं प्रार्थना की देवी।
महावीर मनोरथ की गाथा, तुम स्वयं साधना की देवी।।
तुम विश्व जैन समुदाय गगन, तपते सोने सी कुन्दन हो।
प्राणों का पुण्य समर्पण हो, तुम जन्म-जन्म का वंदन हो।।