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दूर रहें

February 12, 2017जनरल नॉलेजjambudweep

दूर रहें


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उदास , मनहूस और निकम्मे व्यक्ति से। विपरीत, नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति से। अपने को अयोग्य समझने से दूर रहें। गलती स्वीकारे, पर सुधार न करे उनसे। तत्काल, बिना विचारे प्रतिक्रिया करने वाले से। अपने सामने दूसरों की निंदा आलोचना करने वाले से। अपने मुख से अपनी प्रशंसा करने वाले से । सदा प्रसन्न और कर्मनिष्ठ मित्र बनायें। आशावादी बनकर सदैव पुरुषार्थ करें। समय पर निगाह रखें सावधान रहें । विचार हमारे अंग रक्षक हैं— आप विचारों को बंधन में ना बाँधें। समय आने पर हम विचारों का भार उतार सकें यह सामर्थ भी साथ रखें । जैसे कुशल शिल्पी कार्य पूर्ण होने पर अपने शस्त्र अलग रख देता है । आशा ही जीवन है, जीवन ही आशा है। बुरे समय में हिम्मत न हारें। संघर्ष को सफलता की सीढ़ी बनायें। मुसीबतों का मुकाबला कीजिए सफलता मिलने लगेगी। जीवन रहस्य है, इसे विवेक की चाबी से खोलें । प्रतिक्रिया से बचें प्रसन्न रहें :— 

जीवन सूत्र — प्रसन्न रहना

 प्रसन्न रहने वाला अनायास ही सारी कठिनाइयों से पार हो जाता है। प्रसन्नता मैत्री के विकास पर ही संभव है मन में शत्रुता का भाव वाला कभी प्रसन्न नहीं हो सकता। बदले की भावना से प्रेरित व्यक्ति के दुश्मनों की लंबी सूची हो जाती है और उसका दिमाग उसी की क्रियान्विति में ही नष्ट हो जाता है। मैत्री की साधना ही महान साधना है यही जीवन का रहस्य सूत्र है। प्रतिक्रिया और मैत्री में गहरा संबंध है । प्रतिक्रिया की कमी होगी तो मैत्री का भाव बढ़ता चला जायेगा, शत्रुता का भाव कम होता जायेगा। जहाँ प्रतिक्रिया होती है, वहाँ शत्रुता का भाव अवश्य होगा। वहाँ मन में बुरे विचार और बुरे भाव अवश्य आयेंगे। बुरी भावनायें प्रतिक्रिया की भाषा में ही सोचा करती है। जैसे को तैसा होना यही प्रतिक्रिया का गहरा सिद्धान्त है। क्रोध आने पर तत्काल क्रोध नहीं करना, मौन रहना। प्रतिक्रिया के समय को लंबा करना यानि उस समय को टाल देना ही मैत्री एवं प्रसन्नता का सूत्र है। भीतरी आवेग परिस्थिति के साथ समायोजन नहीं करने देता और आवेग के कारण ही नाना प्रकार के व्यवहार होते हैं। प्रतिक्रिया से विरक्त होने का सूत्र— कम से कम तत्काल प्रतिक्रिया मत करो इससे बहुत समस्यायें स्वत: समाप्त हो जाती हैं। झगड़ा, कलह, गाली—गलौच और संघर्ष तत्काल प्रतिक्रिया से होता है। पिता की सेवा उनकी आज्ञा पालने से बढ़कर कोई धर्म नहीं है पुत्र यदि क्रूर स्वभाव का भी हो तो भी पिता उसके प्रति निष्ठुर नहीं हो सकता।

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