
प्रथम देव अरिहंत सुश्रुत सिद्धान्त जू, गुरु निग्र्रन्थ महन्त मुकतिपुर पन्थ जू, 
सुरपति उरग नरनाथ तिनकर, वन्दनीक सुपद-प्रभा। 
जे त्रिजग उदर मँझार प्राणी, तपत अति दुद्धर खरे। 
यह भवसमुद्र अपार तारण, के निमित्त सुविधि ठई। 
जे विनयवंत सुभव्य-उर-अंबुजप्रकाशन भान हैं।
अति सबल मद-कंदर्प जाको क्षुधा-उरग अमान है। 
जे त्रिजग उद्यम नाश कीने, मोहतिमिर महाबली। 
जो कर्म-ईंधन दहन अग्नि समूह सम उद्धत लसै। 
लोचन सुरसना घ्राण उर, उत्साह के करतार हैं। 
जल परम उज्ज्वल गंध अक्षत, पुष्प चरु दीपक धरूँ। 
देवशास्त्रगुरु रतन शुभ, तीन रतन करतार।